SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभिलेखों में उपलब्ध आंतरिक प्रमाणों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। और सौभाग्य से हड़प्पा-लिपि में ऐसे आंतरिक वाचन-प्रमाणों की कमी नहीं है। इनमें सबसे उल्लेखनीय, मोहरों पर उकेरे गये विभिन्न चित्र हैं, जो हड़प्पा के चिह्नों के साथ बड़ी कुशलता के साथ उकेरे गये हैं। इन्हें इरावती महादेवन ने फिल्ड सिम्बल' नाम दिया है। महादेवन ने ऐसे लगभग एक सौ अलग-अलग चित्रों (फिल्ड सिम्बल्स) की पहचान की है। अनेक बार मोहरों का लेखक इन चित्रों से लेख की चित्रात्मक अभिव्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करता प्रतीत होता है और वाचन-प्रयास को प्रामाणिकता भी प्रदान करती हुई दिखती है। इन्हीं चित्रों के कुछ उदाहरणों में यदि जैन पौराणिक कथायें दर्शाई गई प्रतीत होती हैं, तो कुछ चित्र ऐसे भी हैं जिनमें जैनमुनियों के समान मानवाकृतियाँ, सौम्यभाव लिये कायोत्सर्ग मुद्रा में उत्कीर्णित हैं।' हड़प्पा की लिपि में उकेरे गये जैन आचरण और पराणों के सन्दर्भ : जैसाकि पहले कहा गया, प्रारम्भ से हड़प्पा की मोहरों पर जैन विषय-वस्तु का अहसास होने लगा था। इस सन्दर्भ में संभवत: सबसे पहला शोधपत्र पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी के तत्वावधान में सारनाथ' में आयोजित गोष्ठी में जनवरी 1988 में प्रस्तुत किया गया था। उस समय उस तुतलाती भाषा को विद्वानों के सम्मुख रखना एक कठिन कार्य था। इसी विषय को पुन: जैन सब्जेक्ट मैटर इन द हड़प्पन स्क्रिप्ट' शीर्षक से ऋषभदेव प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित संगोष्ठी में राष्ट्रीय संग्रहालय, देहली में दिनांक 30 अप्रैल, 1 मई 1988 को प्रस्तुत किया गया। अब स्थिति कुछ बेहतर होने लगी थी और कुछ चुने हुए उदाहरण लेते हुए शोधपत्र में हड़प्पा में उकेरे गये जैन सन्दर्भो को प्रस्तुत किया गया था। उस लिपि की प्रकृति की सीमित पहचान के रहते, सन्दर्भो को पूर्ण स्पष्टता के साथ प्रस्तुत करना कष्ट साध्य था। फिर भी एक प्रयास किया गया। इस शोधपत्र को बाद में ऋषभ-सौरभ' पत्रिका के वर्ष 1992 के अंक में प्रकाशित भी किया गया। मगर दुर्भाग्य से उस शोधपत्र में सम्मिलित वाचन-प्रयासों के उदाहरण प्रकाशित पत्र में सम्मिलित नहीं किये गये।" उसी क्रम में जैन-विषयवस्तु के वाचन के कुछ उदाहरण अन्यान्य शोधपत्रों में स्थान पाते रहे, उनमें से कुछ शोधपत्र प्रकाशित भी हुए हैं। ऐसे ही कुछ चुने हुए वाचन-प्रयासों के उदाहरण यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं। 1. अपरिग्रह", सील क्रमांक 4318, 210001 प य भर (ण) जो परिग्रहों को नियंत्रित करता है (210001) व्यक्ति सिर पर त्रिरत्न धारण किये हुए है और दो स्तम्भों के मध्यम में स्थित है। सील पर उकेरा गया चित्र विषय का चित्रात्मक अलंकरण प्रतीत होता है। यहाँ व्यक्ति सौम्यभाव लिये नग्नावस्था में कार्यात्सर्ग मुद्रा में दिखाया गया है। उकेरे गये चित्र का सम्पूर्ण वातावरण जैनों के समान श्रमणिक प्रतीत होता है। 2. निग्रंथ", सील क्रमांक 4307,210001 य रह गण्ड/ग्रंथि 0054 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर 2000
SR No.521364
Book TitlePrakrit Vidya 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy