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(अरिण) को रगड़ने से उत्पन्न अग्नि 'क्षत्रियवर्णा' मानी गयी है। 'अरणी - (ऋग्वेद, 3/7/3) काष्ठ- विशेषों की अग्नि शुद्ध मानी गयी है ।
महान् आध्यात्मिक ग्रंथ 'समयसार' की 14वीं गाथा की टीका में आचार्य अमृतचन्द्र लिखते हैं- “सप्तार्चि: " अर्थात् अग्नि सात प्रकार की है। इन सात प्रकार की अग्नियों के नामों का उल्लेख 'अमरकोश' में निम्नानुसार मिलता है— 1. काली, 2. कराली, 3. मनोजुषा, 4. सुलोहिता, 5. सुधूम्रवर्णा, 6. स्फुलिंगिनी और 7. विश्वदासाख्या ।
अग्निकायिक जीवों के भेद
“इंगाल - जाल - अच्ची - मुम्मुर - सुद्धागणी य अगणी य । अवि एवमाई उक्काया समुद्दिट्ठा ।। ”
— (पंचसंग्रह 79, पृ० 16, धवला पुस्तक भाग 1, पृ० 273, गाथा 152 ) अर्थात् अंगार, ज्वाला, अर्चि (अग्निकिरण ), मुरमुर (निर्धूम और ऊपर राख से ढँकी हुई अग्नि ), शुद्ध - अग्नि (बिजली और सूर्यकान्तमणि 'यथार्ककांत : ' समयसार कलश, 175) से उत्पन्न अग्नि), और धूमवाली अग्नि इत्यादि अन्य अनेक प्रकार के तेजस्कायिक जीव कहे गये हैं ।
चार पर्याप्ति — (1) आहार, (2) शरीर, (3) इन्द्रिय और (4) श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति — ऐसी चार पर्याप्तियाँ नामकर्म के उदय से एकेन्द्रिय जीवों को प्राप्त होती हैं ।
अगणी य ।
“ इंगाल जाल अच्ची मुम्मुर सुद्धागणी य वण्णादीहि य भेदा सुहुमाणं णत्थि ते भेदा । । ” – (वही, जीवसमास 77 ) अर्थात् ज्वाला, अर्चि (अग्निकिरण ), मुरमुर (निर्धूम राख से ढँकी हुई अग्नि ), शुद्ध - अग्नि (बिजली और सूर्यकान्तमणि से प्राप्त अग्नि), और धूमवाली अग्नि इत्यादि स्थूल अग्नि के भेद कहे गये हैं । ये भेद सूक्ष्म अग्नि के नहीं हैं। (सूक्ष्म अग्नि तो अनेक प्रकार की है) ।
यही बात आचार्य अमृतचंद्र भी लिखते हैं
“ज्वालाङ्गारास्तथार्चिश्च मुर्मुरः शुद्ध एव च ।
अग्निश्चेत्यादिका ज्ञेया जीवा ज्वलनकायिका । ।” - ( तत्त्वार्थसार 2/64 )
इसीलिये अग्नि को जीव मानते हुये जैन परम्परा में अग्निकायिक जीवों की विराधना को पाप माना गया है और प्रतिक्रमण करते समय उसके प्रति खेद व्यक्त किया गया है — “पुढवी - जलग्गिवाऊ ते वि वणप्फदी य वियलतया ।
जे जे विराहिदा खुल मिच्छा मे दुक्कडं हॉज्ज ।।” – (कल्लाणालोयणं, 16 ) अर्थ :पृथ्वीकायिक जीव, जलकायिक जीव, अग्निकायिक जीव, वासयुकायिक जीव, वनस्पतिकायिक जीव और विकलत्रय जीवों में से जो-जो मुझसे विराधना हो गये हों, उनकी विराधना से होनेवाला सब पाप मेरा मिथ्या हो ।
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प्राकृतविद्या अक्तूबर
-दिसम्बर 2000