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इस अंक के लेखक-लेखिकायें
1.स्व० डॉ० मंगलदेव शास्त्री आप संस्कृतविद्या एवं भारतीय संस्कृति के मूर्धन्य मनीषी थे। सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के यशस्वी कुलपति रहे। इस अंक में प्रकाशित आलेख 'भारतीय दर्शन एवं जैनदर्शन' आपके द्वारा लिखित है।
2.स्व० पं०सुखलाल संघवी आप जैनदर्शन एवं भारतीय संस्कृति के मूर्धन्य मनीषी थे। इस अंक में प्रकाशित आलेख दिगम्बर-परम्परा के मनीषी और वर्तमान स्थिति' आपके द्वारा लिखित है।
3. डॉ० राजाराम जैन आप मगध विश्वविद्यालय में प्राकृत, अपभ्रंश के प्रोफेसर' पद से सेवानिवृत्त होकर श्री कुन्दकुन्द भारती जैन शोध संस्थान के निदेशक' हैं। अनेकों महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों, पाठ्यपुस्तकों एवं शोध आलेखों के यशस्वी लेखक भी हैं।
इस अंक के अन्तर्गत प्रकाशित 'अपभ्रंश भाषा एवं उसके कुछ प्राचीन सन्दर्भ' नामक . आलेख के लेखक आप हैं।
पत्राचार-पता—महाजन टोली नं० 2, आरा-802301 (बिहार)
4. डॉ० कलानाथ शास्त्री आप संस्कृतविद्या एवं भारतीय संस्कृति के मूर्धन्य मनीषी हैं। राजस्थान विश्वविद्यालय के कृतकार्य प्रोफेसर डॉ० कलानाथ शास्त्री जी की लेखनी से प्रसूत लेख प्राकृत काव्यशैली का दूरगामी प्रभाव' इस अंक के अन्तर्गत प्रकाशित है।
स्थायी पता—सी-8, पृथ्वीराज रोड, जयपुर-302001 (राज०)
5. डॉ० महेन्द्र सागर प्रचंडिया आप जैनविद्या के क्षेत्र में सुपरिचित हस्ताक्षर हैं, तथा नियमित रूप से लेखनकार्य करते रहते हैं। इस अंक में प्रकाशित 'नव खष्टाब्दि अष्टक' नामक कविता के रचयिता आप हैं।
स्थायी पता—मंगल कलश, 394, सर्वोदय नगर, आगरा रोड़, अलीगढ़-202001 (उ०प्र०)
6. प्रो० माधव श्रीधर रणदिवे-आप छत्रपति शिवाजी कॉलेज, सतारा (महा०) में प्राकृत के प्रोफेसर रहे और महाराष्ट्र के अधिकांश कॉलेजों में प्राकृत के प्रचार-प्रसार में आपका अनन्य योगदान रहा। अवकाश-ग्रहण करने के बाद भी उन्होंने प्राकृतविद्या के विविध क्षेत्रों में कार्य करते आ रहे हैं।
इस अंक में प्रकाशित 'आयरियप्पवरो सिरिदेसभूसणो' शीर्षक का आलेख आपकी शोधपूर्ण लेखनी से प्रसूत है।
स्थायी पता—गोधूलि बिल्डिंग, छत्रपति रोड़, सतारा (महाराष्ट्र)। 7. डॉ० विद्यावती जैन—आप मगध विश्वविद्यालय में वरिष्ठ रीडर हैं तथा जैन साहित्य