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________________ और स्तोत्र संग्रहों के भाषानुवादक, जैन वांग्मय के महान् अध्येता तथा जैन विद्याओं के आमरण अवदानी, स्वनामधन्य विद्वान् पं० डॉ० पन्नालाल साहित्याचार्य अब हमारे बीच नहीं रहे। फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी गुरुवार 8 मार्च की रात्रि में सवा बजे, श्रीक्षेत्र कुण्डलपुर में बड़ेबाबा को नमन करते हुए उन्होंने समाधि-मरण प्राप्त किया। उनके जाने से बीसवीं शताब्दी की पण्डित-परम्परा का प्रमुख प्रकाश-स्तम्भ ढह गया। डॉ० पन्नालाल अनेक उपाधियों से अलंकृत थे, परन्तु साहित्याचार्य' शब्द उनके लिये रूढ़ हो गया था। ग्यारह आगम वाचनाओं में कुलपति पद को सुशोभित करनेवाले साहित्याचार्य जी ने कभी अपनी क्षमताओं को लेकर रंचमात्र भी अहंकार नहीं किया। यह निरभिमानता, निस्पृहता, समता और सौजन्य, साहित्याचार्य जी की उस पारम्परिक ज्ञानसाधना का फल था जिसने श्रावक रहते उन्हें वंदनीय' बना दिया था। प्राकृतविद्या परिवार की ओर से दिवंगत भव्यात्मा को बोधिप्राप्ति, सुगतिगमन एवं शीघ्र निर्वाण-लाभ की मंगलकामना के साथ सादर श्रद्धांजलि समर्पित है। -सम्पादक ** आचार्य कुन्दकुन्द-स्मति व्याख्यानमाला सम्पन्न श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ (मानित विश्वविद्यालय) नई दिल्ली में श्री कुन्दकुन्द भारती न्यास द्वारा स्थापित शौरसेनी प्राकृतभाषा एवं साहित्य विषयक 'आचार्य कुन्दकुन्द-स्मृति व्याख्यानमाला' का सप्तम सत्र 22-23 मार्च को सानन्द सम्पन्न हुआ। . इस अवसर पर मंगल आशीर्वचन में पूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज ने संस्कृत की संवाहिका बताया। उन्होंने कहा कि इन दोनों भाषाओं में जो अपार साहित्य निबद्ध है, वह इस देश की वास्तविक सम्पत्ति है। महाकवि भास एवं कालिदास आदि ने अपने नाटकों में इन भाषाओं के जीवन्तरूप प्रस्तुत कर इन्हें अमरत्व प्रदान किया है। . सत्र में समागत विद्वानों एवं अतिथियों का स्वागत करते हुए विद्यापीठ के कुलपति प्रो० वाचस्पति उपाध्याय जी ने संस्कृत के साथ प्राकृतभाषा का अभिन्न तादात्म्य बताते हुए इन दोनों की मांगलिक युति का महत्त्व बताया। मुख्यवक्ता डॉ० श्रीरंजनसूरिदेव, पटना (बिहार) ने महाकवि कालिदास एवं राजशेखर के नाट्यसाहित्य में प्रयुक्त प्राकृतों, विशेषत: शौरसेनी प्राकृत का महत्त्व प्रतिपादित किया। अध्यक्ष प्रो० मुनीश चन्द्र जोशी ने पुरातात्त्विक सामग्री के अध्ययन-अनुसंधान के लिए प्राकृतभाषा के ज्ञान की अनिवार्यता बतायी। समारोह के संयोजक डॉ० सुदीप जैन ने समागत विद्वानों एवं अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस विद्यापीठ में प्राकृतभाषा का विभाग माननीय डॉ० मण्डन मिश्र जी एवं प्रो० वाचस्पति उपाध्याय जी के प्रयत्नों से स्थापित हुआ है एवं प्रगतिपथ पर अग्रसर है। इस अवसर पर बी०एल० इन्स्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी के निदेशक प्रो० विमल प्रकाश जैन एवं महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वृषभप्रसाद जैन भी उपस्थित थे। समापन-सत्र में माननीय कुलाधिपति श्री के०पी०ए० मेनोन जी के सान्निध्य में प्राकृत पाठ्यक्रम के छात्रों को प्रमाणपत्र दिये गये। –सम्पादक ** प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2000 40 107
SR No.521364
Book TitlePrakrit Vidya 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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