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________________ (घ) “चारित्तं खलु धम्मो, धम्मो जो सो समो त्ति णिट्ठिो । मोहक्खोह-विहीणो, परिणामो अप्पणो हि समो।।" -(प्रवचनसार, गा0 7) अर्थ:- चारित्र, जिसे 'समभाव' अर्थात् 'मोह और क्षोभ से रहित आत्मा का परिणाम' कहा गया है, वही वास्तव में 'धर्म' है। 'भावपाहुड' में भी यही बात कही गयी है। (ङ) “मोहक्खोहविहीणो परिणामो अप्पणो धम्मो।" -(भावपाहुड, गाथा 83) मोह और क्षोभ से रहित आत्माका परिणाम ही 'धर्म' है। (च) समदा तह मज्झत्थं सुद्धोभावो य वीयरायत्तं । ___ तह चारितं धम्मो सहावाराहणा भणिया।। -(वृहद् नयचक्र, 356) अर्थ:- समता, माध्यस्थ, शुद्धभाव, वीतरागता, चारित्र, स्वभाव की आराधना तथा धर्म –ये सब एकार्थवाची हैं। 2. फलतः धर्म की परिभाषा (क) “इष्टस्थाने धत्ते इति धर्म:' – (सर्वार्थसिद्धि, 9/2) अर्थ:- जो इष्टस्थान में धारण कराता (ले जाता) है, वह धर्म हैं। (ख) "...समीचीनं धर्म कर्मनिवर्हणम् । संसारदुःखत: सत्त्वान् यो धरत्युत्तमे सुखे।। सदृष्टिनिकृत्तानि धर्मं धर्मेश्वरा विदुः।।" – (रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 2, 3) अर्थ:- जो समीचीन, कर्मों का विनाशक, संसार के दु:खों से उठाकर प्राणियों को उत्तमसुख में ले जानेवाला है— वही धर्म है। धर्म के अधिपतियों ने (इस दृष्टि से) सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र को 'धर्म' कहा है। (ग) “धर्मो नीचैः पदादुच्चैः पदे धरति धार्मिकम् ।” – (पंचाध्यायी, उत्तरार्द्ध, 715) अर्थ:- जो धर्मात्माओं को नीच पद (संसार) से उच्चपद (मोक्ष) में ले जाये, वही 'धर्म' है। (घ) धमें सुहु पावेण दुहु एउ पसिद्धउ लोइ। तम्हा धम्मु समायरहि जें हिय-इंछिउ होइ।। -(सावयधम्मदोहा, 101) अर्थ:- धर्म से सुख होता है और पाप से दुःख होता है— यह लोकप्रसिद्ध तथ्य है। अत: जिसे अपने कल्याण की अभिलाषा है, उसे धर्म का भलीप्रकार से आचरण करना चाहिए। 3. प्रयोगतः धर्म की परिभाषा (क) “अहिंसादिलक्षणो धर्म:।" – (राजवार्तिक, 6/13) अर्थ:— 'धर्म' अहिंसा आदि लक्षणोंवाला है। (ख) “जीवाणं रक्खणो धम्मो।" – (कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 478) अर्थ:- जीवों की रक्षा करना ही धर्म है। प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000 0041
SR No.521363
Book TitlePrakrit Vidya 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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