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________________ किंचित् भी मेरा नहिं जग में, फिर भी परिग्रह बढ़ता जाता। आत्म-रमण को छोड़ निरंतर, विषयों में मन दौड़ा जाता ।। परिग्रह छोड़ ब्रह्म को समझे, ऐसा अब संदेश सुनाओ, हे पावन पर्दूषण ! आओ।।7।। अभयदान दो, हे पर्युषण ! दशों धर्म को पूर्ण निभावे । सही स्वरूप समझकर उनका, आत्म निरीक्षण करने पावे ।। इस ही में उद्धार छिपा है, सबको यह आदेश सुनाओ। हे पावन पर्युषण ! आओ।।8।। ** सिगरेट से भी खतरनाक है तन्दूरी रोटी यूं तो मुँह का स्वाद बदलने के लिये आजकल मध्यमवर्गीय समाज में भी रेस्तरां, होटल जाना आम हो गया है। आम भोजन से हटकर कुछ खाने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन' तथा 'मिलान विश्वविद्यालय' के राष्ट्रीय ट्यूमर संस्थान' द्वारा अध्ययन से यह पता चला है कि तंदूरी खाना खानेवाले लोगों को, तन्दूरी खाने से परहेज करने वालों की तुलना में कैंसर के शिकार होने का खतरा कई गुना ज्यादा होता है। उनके अनुसार तंदूरी खाना बनाने के दौरान अर्थात् उसके पकने व भूनने की प्रक्रिया में उसमें जहरीले रसायन बेंजोपाइरिन का निर्माण हो जाता है। यह अतिघातक रसायन शरीर के कैंसरग्रस्त होने में अहम् भूमिका निभाता है। तंदूर में भोजन पकाते समय उसका तापक्रम 700 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक होता है। यह तापक्रम भोजन सोख लेता है, जिससे उसमें कई प्रकार की रसायनिक क्रियायें होती हैं, जिससे बेंजोपाइरिन का भी निर्माण होता है, जो कैंसर के लिये उत्तरदायी है। वैज्ञानिक शोधों से यह भी पता चला है कि रोटी सेकने का परम्परागत तरीका अर्थात् चूल्हे में सिकी रोटी गुणवत्ता एवं स्वाद में अंगीठी. स्टोव, हीटर या तंदूर में सिकी रोटी के मुकाबले अधिक स्वादिष्ट होती है। कोयले की राख जो रोटी पर लग जाती है, वह भी कुछ मात्रा में कैल्शियम की कमी को पूरा करती है व मंदी आंच पर सिकी होने के कारण उसके अन्दर का भाग पूरी तरह से सिक जाता है, जो कि जल्दी पचनशील होता है; जबकि तेज आंच पर सिकी रोटी को सिर्फ ऊपर तह ही सिक पाती है, जो कि पेट में जाकर कई गड़बड़ियों जैसे गैस, अपचनशीलता, कब्ज आदि का कारण बनती है। तंदूर में पकनेवाले एक किलोग्राम खाद्य पदार्थ में 600 सिगरेट पीने के बराबर बेंजोपाइरिन का निर्माण होता है। इसका मतलब यह हुआ कि तंदूरी भोजन का सेवन सिगरेट पीने से भी ज्यादा खतरनाक है। --(साभार -- मेवाड़ लौकाशाह क्रान्ति, अंक दि0 14.10.2000) ** प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000 00 39
SR No.521363
Book TitlePrakrit Vidya 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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