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________________ करता है। जैनदर्शन में रत्नत्रय की मीमांसा आत्मानुभूति हेतु मार्गप्रशस्त करता है। आत्मसाधक भैया भगवतीदास एवं उनका 'ब्रह्मविलास' नवीन कवि का परिचय आकर्षित करता है। पुस्तक समीक्षा भी उन्हें देखने की ललक जगाती है। साथ ही जैन संस्कृति आदि सम्बन्धी अन्य जानकारी भी अच्छी है। समाचारदर्शन भी बहुत सारी सामग्री जानने हेतु प्रस्तुत करता है। सभी दृष्टि से अंक अच्छा बन पड़ा है। बधाई स्वीकार करें। –मदन मोहन वर्मा, ग्वालियर. (म०प्र०) ** _ “एक महत्त्वपूर्ण पत्र' संस्कृत-प्राकृत भाषाओं के एक मनीषी साधक के 'प्राकृतविद्या' के बारे में विचार समादरणीय सुदीप जी ! आपकी सम्पादकीय मनीषा से मण्डित स्वयं आपके हाथों प्राप्त कर आन्तरिक प्रसाद का बोध हुआ। 'प्राकृतविद्या' ने हिन्दी की जैन साहित्यिक शोध-पत्रकारिता में अपनी उल्लेखनीय पहिचान कायम की है और जैनविद्या के बहकोणीय शास्त्रीय-चिन्तन की दिशा में इसकी भूमिका सातिशय महत्त्वपूर्ण है। ___महामहिम आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज के पावन आशीर्वाद से संचालित श्री कुन्दकुन्द भारती ट्रस्ट को भी इस पत्रिका ने विशिष्ट अस्मिता प्रदान की है। यथाप्राप्त अंक में परिवेषित सामग्री तो महाघ है ही. ज्ञानोन्मेषक भी है। विशेषत: आपका सम्पादकीय नई वैचारिक ऊष्मा का जनक है। डॉ० राजाराम जी का आलेख ऐतिहासिक मूल्य का है। भूरिश: साधुवाद।। —विद्यावाचस्पति डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव, पटना (बिहार) ** 9 'प्राकृतविद्या' पत्रिका मिल गई थी, पढ़कर मन को विशेष शांति प्राप्त हुई। हमको बहुत अच्छी लगी। आचार्य विद्यानन्द जी का 'अभीक्ष्णज्ञानोपयोग' वाला लेख तो बहुत ही अच्छा लगा। अन्य लेख भी अच्छे हैं। पुस्तक-समीक्षा एवं समाचार-स्तंभ से भी ज्ञानवृद्धि —खेमचन्द जैन, लालसोट (राज०) ** हुई। असहिष्णुता की मूर्ति "रागेण दभेण मदोदयेण, संजत्त-चिंता विणयेण हीणा। कोहेण लोहेण किलिस्समाणा, कीवणदा होंति असय-काया।।" -(आचार्य यतिवृषभ, तिलोयपण्णत्ति. 1533) अर्थ:-- इस कलिकाल में विनय से हीन एवं चिंता से युक्त मनुष्य, राग, दम्भ, मद, क्रोध एवं लोभ से क्लेशित होते हुये निर्दयता एवं ईर्ष्या की मूर्ति होते हैं। ** प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000 00 105
SR No.521363
Book TitlePrakrit Vidya 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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