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________________ 'विद्याधर काण्ड' में भरतक्षेत्र की श्रमण-परम्परा इक्ष्वाकुवंश के नायक ऋषभजिन को केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद उनके पुत्र भरत को चक्ररत्न प्राप्त हुआ। उसके द्वारा सबको अपने अधीन सिद्ध कर लेने के बाद भरत की अधीनता मात्र स्वाभिमानी बाहुबलि ने स्वीकार नहीं की । भरत ने जब बाहुबलि से आज्ञा मनवाने हेतु अपने दूत भेजे, तो बाहुबलि ने दूत को अपमानित कर तथा गरजकर कहा – “एक पिता की आज्ञा स्वीकार की थी, दूसरी आज्ञा स्वीकार नहीं की जा सकती । प्रवास करते समय परम जिनेश्वर ने जो कुछ भी विभाजन करके दिया है, वही हमारा सुखनिधान शासन है; ना ही मैं लेता हूँ, ना ही देता हूँ।” इससे भरत व बाहुबलि में युद्ध हुआ। युद्ध में बाहुबलि विजयी हुये । अन्त में भरत बाहुबलि के पास जाकर बोले—“धरती तुम्हारी है, मैं तुम्हारा दास हूँ ।" यह सुनते ही बाहुबलि को वैराग्य उत्पन्न हो गया । प्रारम्भ की 4 संधियों के बाद श्रमण परम्परा की एक और घटना का उल्लेख चौदहवीं संधि में मिलता है, जिसमें राक्षसवंशी राजा रावण द्वारा विद्याधरराज इन्द्र के प्रति युद्ध में में प्रयाण करते समय इक्ष्वाकुवंशी सहस्रकिरण की जलक्रीड़ा से रावण की पूजा विघ्न पड़ जाता है । विघ्न को लेकर रावण व सहस्रकिरण के बीच हुए युद्ध में सहस्रकिरण रावण द्वारा बन्दी बना लिया जाता है; तभी जंघाचरण मुनि द्वारा अपने पुत्र सहस्रकिरण को मुक्त करने के लिए कहने पर रावण ने यह कहते हुए शीघ्र ही मुक्त कर दिया कि “मेरा इनके साथ किस बात का क्रोध ? केवल पूजा को लेकर हम में युद्ध हुआ था । आज भी प्रभु हैं। " ये 'विद्याधर काण्ड' में भरतक्षेत्र की वैदिक-परम्परा प्रारम्भ में तीनों वंशों विद्याधरों में 'विद्याधर वंश' के राजा सबसे अधिक शक्तिशाली थे। वानरवंश के विद्याधरों में बालि जैसे शक्तिमान राजा के होने से पूर्व तक 'वानरवंश' व 'राक्षसवंश' में मैत्री व प्रेम के सम्बन्ध रहे हैं । 'विद्याधर वंश' के साथ हुये युद्ध में 'राक्षसवंश' ने 'वानरवंश' का साथ दिया है । जैसे— 1. विद्याधर 'विद्यामंदिर' की कन्या 'श्रीमाला' ने जब विद्यमान सभी विद्याधरवंशी राजाओं को छोड़कर वानरवंश के 'किष्किन्ध' को माला पहना दी, तो विद्याधरवंश का 'विजयसिंह' भड़क उठा कि "श्रेष्ठ विद्याधरों के मध्य वानरों को प्रवेश क्यों दिया गया, अत: वर को मार वानरवंश की जड़ उखाड़ दो।" यह सुन वानरवंशीय राजा 'अन्धक' ने ललकारा— "तुम विद्याधर और हम वानर, यह कौन - सा छल है।" तब इन दोनों वंशों के बीच हुए इस युद्ध में राक्षसवंश का राजा 'सुकेश' वानरवंश की तरफ से लड़ा। जब युद्ध में विद्याधर 'भिन्दपाल' से आहत होकर 'किष्किन्ध' मूच्छित हो गया, तो 'सुकेश' किष्किन्ध को लेकर अपने साथ पाताललोक गया । 'विद्याधर वंश' के 'विद्युत्-वाहन' ने 'किष्किन्ध' व 'सुकेश' के नगर प्रमुखों का अपहरण कर वहाँ के विद्याधरों को अपने प्राकृतविद्या अप्रैल-जून '2000 ☐☐ 62
SR No.521362
Book TitlePrakrit Vidya 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size9 MB
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