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________________ शौरसेनी प्राकृत है। अश्वघोष, इसका प्रयोग संस्कृत नाटकों के प्राकृतभाषा के गद्यांशों में हुआ भास, कालिदास के नाटकों और बहुत से नाटकों में इस भाषा के उदाहरण प्राप्त होते हैं । इस भाषा की उत्पत्ति शूरसेन या मथुरा प्रदेश में हुई है । वररुचि ने शौरसेनी को संस्कृत से उत्पन्न माना है । इस भाषा के लक्षण एवं उदाहरण वररुचि, हेमचन्द्र, क्रमदीश्वर, लक्ष्मीधर, मार्कण्डेय आदि वैयाकरणों ने दिये हैं । शौरसेनी की विशेषतायें 1. शौरसेनी में अनादि में वर्तमान असंयुक्त 'त्' का 'द्' होता है । यथा— एतस्मात् > एदाओ । 2. शौरसेनी में वर्णान्तर के अध: वर्तमान 'त' का 'द्' होता है । यथा— महान्तः>महंदो, निश्चिन्तः>णिच्चिदो । 3. शौरसेनी में 'तावत्' के आदि 'त्' का दकार होता है । यथा - तावत् दाव, ताव । 4. शौरसेनी में आमन्त्रण वाले 'सु' के पर में रहने पर पूर्ववाले नकारान्त शब्द के 'म' के स्थान पर विकल्प से 'य्' होता है । यथा - भो रायं ! भो राजन् ! भो. विअयवम्मं ! >भो विजयवर्मन् ! | 5. शौरसेनी में 'र्य' के स्थान पर विकल्प से 'य्य' आदेश होता है । यथा – सुय्यो> सूर्य, अज्जो - आर्य, पज्जाकुलो पर्याकुलः । 6. शौरसेनी में 'थ्' के स्थान पर विकल्प से 'घ्' होता है । यथा - नाथ: > णाधो, कथम्>कथं, राजपथः> राजपधो । 1 7. शौरसेनी में 'भू' धातु के हकार का 'भ्' आदेश होता है। यथा—भवति>भोदि, होदि 8. शौरसेनी में 'इह' आदि के हकार के स्थान में 'ध' विकल्प से होता है - इह > ध, भव हो, होह । 9. शौरसेनी में 'क्त्वा' प्रत्यय के स्थान पर 'इय' और 'दूण', 'य' आदेश विकल्प से होते हैं। यथा—भविय, भोदूण, हविय, होदूण, पढिय, पढिदूण, रमिय, रमिदूण । 10. शौरसेनी में 'पूर्व' शब्द का 'पुरव' आदेश होता है। यथा— अपूर्वं नाट्यम् अपुरवं णाड्यं । 11. शौरसेनी में 'त्यादि' के आदेश 'दि' और 'ए' के स्थान पर दे' आदेश होता है । यथा— दि, देदि, भोदि, होदि रमदे । 46 प्राकृतविद्या + अप्रैल-जून '2000
SR No.521362
Book TitlePrakrit Vidya 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size9 MB
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