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________________ करने के लिये प्रेरित किया, जिनमें सामाजिक विकास के साथ-साथ आत्मिक विकास का भाव निहित हो। उन्होंने मनुष्य को शांति, विकास और मोक्ष (मुक्ति) प्राप्ति का पथ प्रशस्त किया, जो वास्तव में बाहर से भीतर की यात्रा' का मार्ग है। जो सत्य, निष्ठा, लोककल्याण आदि मार्गों से होते हुये 'अंतर (भीतर) के 'आत्म-साक्षात्कार' का रास्ता है। इसके द्वारा उन्होंने जनमानस को स्वावलम्बन तथा स्वाधीनभाव का महत्त्व समझाया। तीर्थंकर महावीर ने मनुष्य को पाप-कर्मों में प्रवृत्त न होने की सलाह दी। 'घृणा पाप से करो, पापी से नहीं' —यह उनका सिद्धान्त-वाक्य है। इसके द्वारा उन्होंने मनुष्य को दुष्कर्मों से बचने की बात कही। साथ ही पापी (बुरे) व्यक्ति को भी चारित्रिक शुद्धि के द्वारा उत्थान का मार्ग प्रशस्त किया। उनकी दृष्टि में वह व्यक्ति सुधार के पश्चात् सामाजिकरूप से तिरस्कृत या उपेक्षा का पात्र नहीं है। उनका अन्य सिद्धांत है—“मनुष्य जन्म से नहीं, कर्म से महान् बनता है।" यह सूत्रवाक्य व्यक्ति को उच्चकर्म करने के लिए प्रेरित करता है। तीर्थंकर महावीर की दृष्टि में कर्म की श्रेष्ठता ही महानता का मापदण्ड है। जिसके कर्म श्रेष्ठ हैं, वह व्यक्ति महान् (उच्च) है। सत्कर्मों के द्वारा कोई भी व्यक्ति महान् बन सकता है। तीर्थंकर महावीर का यह विचार उन मनुष्यों के दम्भ को तोड़ता है, जो जन्म से कुलीन होकर निकृष्ट कार्यों में संलग्न हैं। तीर्थंकर महावीर ने 'अपरिग्रह' तथा 'परिग्रह-परिमाणवत' का उपदेश दिया। अपनी आवश्यकताओं को कम से कम करो, धन संग्रह की लालसा पर अंकुश रखो और उसे सीमा में बाँध दो, यह परिग्रह परिमाण व्रत' है। मनुष्य की इच्छायें असीम व अनंत होती हैं। उनकी पूर्ति के लिए वे अन्याय, अत्याचार एवं अनुचित साधनों का प्रयोग करते हैं। वर्तमान समय में जीवन की आपाधापी तथा राजनैतिक एवं आर्थिक क्षेत्र में बढ़े हुए भ्रष्टाचार को रोकने में 'अपरिग्रह' या 'सीमित सम्पत्ति का सिद्धान्त' अमोघ-अस्त्र साबित हो सकता है। भगवान् महावीर ने स्त्रियों की स्वतंत्रता पर जोर दिया। उन्होंने धार्मिक क्षेत्र में भी स्त्रियों को चरम आत्मोत्थान के लिये दिशाबोध दिया। उनके 'नारी स्वातंत्र्य' के विचारों से प्रेरित होकर स्त्रियों ने उनके समवशरण में आर्यिका (साध्वी) दीक्षा लेकर संसार बंधन से मुक्ति का मार्ग अपनाया। आर्यिका चंदना' को उनके समवशरण' में प्रथम 'गणिनी आर्यिका बनने का गौरव प्राप्त हुआ। आज संपूर्ण विश्व भी अनुभव करने लगा है कि नारी के सहयोग के बिना संसार की वास्तविक प्रगति नहीं है। नारी-सहयोग को लेकर विश्व राष्ट्र स्तर पर बनाई गई संस्थायें इसका जीवन्त प्रमाण है। भगवान महावीर के 'जीव-साम्य' के सिद्धान्त ने युगांतकारी परिवर्तन किया। उन्होंने विश्वस्तर पर मनुष्यों के बीच विषमता की खाई पाटकर उन्हें समता (समानता) के धरातल पर उपस्थित किया। 10 34 प्राकृतविद्या अप्रैल-जून '2000
SR No.521362
Book TitlePrakrit Vidya 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size9 MB
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