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पदवी से उन्हें अलंकृत किया गया था। अत: ई०पू० 08 में वे आचार्य हुए थे। शिलालेखों के अनुसार उनका जन्म माघ शुक्ल पंचमी, विक्रम संवत् 05 में हुआ था। इसप्रकार उनकी जन्मतिथि कालगणना के अनुसार ईस्वी पूर्व 52 निर्धारित है। ____ गुप्तकाल के पूर्व तक के लगभग दो दर्जन से अधिक ऐसे प्राकृत के शिलालेख कर्नाटक प्रदेश में उपलब्ध हैं, जिनसे मौर्य, चुट, सातवाहन, पल्लव और कदम्ब राजाओं के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है। कर्नाटक के प्राचीनतम शासक सातवाहन थे, जिन्होंने प्रशासनिक भाषा के रूप में प्राकृत का प्रयोग किया था और जनता के लिए भी प्राकृत की ही स्वीकृति प्रदान की थी। अत: यह स्पष्ट है कि सातवाहनों के राज्यकाल में ही प्राकृतभाषा का विकास हुआ। राजा सातवाहन ने अपने अन्त:पुर में प्राकृत को व्यवहार की भाषा के रूप में प्रचलित किया था। सातवाहन राजाओं ने ई०पू० 230 से ई०पू० 220 तक अर्थात् चार सौ वर्षों से अधिक राज्य किया। इस वंश के तीस राजाओं ने राज्य किया। पहले इनकी राजधानी महाराष्ट्र में 'पैठन' (प्रतिष्ठानपुर) थी, फिर क्रमश: हैदराबाद, कृष्णा और गोदावरी तट तक राज्य विस्तृत हो गया। ___ दक्षिण भारत के विभिन्न प्रदेशों की राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक स्थिति के अध्ययन से भी इस तथ्य की संपुष्टि होती है कि अपने युग में आचार्य कुन्दकुन्द का दक्षिण भारत में विशेष प्रभाव था। श्री रामास्वामी आयंगर महोदय के अनुसार आचार्य कुन्दकुन्द का युग ई०पू० प्रथम शताब्दी से लेकर ईस्वी प्रथम शताब्दी का पूर्वार्द्ध रहा है और वे 'द्रविड़संघ' के मुखिया रहे हैं। यह भी एक ऐतिहासिक तथ्य है कि प्राचीनतम अभिलेख अधिकतर प्राकृत में और कुछ संस्कृत में उपलब्ध होते हैं; न कि क्षेत्रीय भाषाओं में। दिगम्बर जैनों ने आगम या श्रुत को संरक्षित करने के लिये जैन-शौरसेनी या शौरसेनी . प्राकृत में रचना की थी। ___ इसमें कोई सन्देह नहीं है कि मत-भेद के कारण दिगम्बर-श्वेताम्बरों के विचारों में ही नहीं, कहीं-कहीं आचरण में और भाषा में भी परिवर्तन स्पष्ट लक्षित होने लगा। 'णिग्गंठ' (निर्ग्रन्थ) शब्द का अर्थ जो महात्मा गौतमबुद्ध के समय में दिगम्बर अपिरग्रही साधु' का वाचक था, वह कालान्तर में 'श्रमण परिव्राजक' का अर्थ देने लगा और पक्ष-व्यामोह होने पर अल्प वस्त्रादि का प्रयोग करने पर भी उसे 'परिग्रह' से रहित समझा जाने लगा। अत: दण्ड-वस्त्रधारी साधु-सन्त भी 'णिग्गंठ' (निर्ग्रन्थ) कहे जाने लगे। इसप्रकार परवर्तीकाल में शब्द अर्थ-विशेष में रूढ़ हो गये। अत: ऊपर से समान प्रतीत होने पर भी प्राकृतभाषा में ही दार्शनिक और पारिभाषिक शब्दावली में कई तरह
की भिन्नता, सूक्ष्मता तथा गम्भीरता लक्षित होती है। ___डॉ० जॉर्ज ग्रियर्सन ने प्राकृत के उपलब्ध साहित्य के आधार पर प्राकृतों का विभाजन दो रूपों में किया है- पश्चिमी और पूर्वीय प्राकृत। यद्यपि यह बहुत स्थूल विभाजन है,
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प्राकृतविद्या अप्रैल-जून 2000