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5. अनीप्सित
- अहिं लङ्घयति। 6. संज्ञान्तरानाख्यात - गां दोग्धि पयः। 7. अन्यपूर्वक
ग्राममधिशेते। त्रिविध कर्ता – (द्र०, वा०प० 3/7/125; व्याकरण दर्शनेर इतिहास, पृ० 265-67)
1.अभिहितकर्ता - देवदत्त: पचति। 2. अनभिहितकर्ता
देवदत्तेन पच्यते। 3. कर्मकर्ता
पच्यते ओदन: स्वयमेव। प्राकृत में संस्कृत के ही समान छह कारकों की मान्यता है और जिन कारकों में जिन विभक्तियों के विधान का निर्देश संस्कृत में है, प्राय: प्राकृत में भी तदनुसार विभक्तियाँ की जाती हैं। प्राकृत में षष्ठी विभक्ति के रूप चतुर्थी के समान होते हैं। जहाँ द्विकर्मक धातुओं का प्रयोग होता है, वहाँ संस्कृत के अनुसार ही अपादानादि कारकों की अविवक्षा में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग देखा जाता है। 4. स्त्री-प्रत्यय ___पाणिनीय 'अष्टाध्यायी' में आठ 'स्त्री-प्रत्यय' कहे गए हैं— टाप, चाप, डाप, डीप, डीए, डीन, ऊ, ति। आचार्य शर्ववर्मा मुख्यत: दो ही प्रत्यय स्वीकार करते हैं- आ तथा ई। ऊङ्, ति की चर्चा कातन्त्र के व्याख्याकारों ने की है। प्राकृत में तीन ही प्रत्यय होते हैं- आ, ई तथा ऊ। संस्कृत की तरह प्राकृत में भी अकारान्त शब्दों से स्त्रीलिंग बनाने के लिए 'आ' प्रत्यय किया जाता है। जैसे— बाल से बाला, अचल से अचला इत्यादि । संस्कृत के राजन्, ब्रह्मन्, हस्तिन् आदि नकारान्त शब्दों से स्त्रीलिंग रूप बनाने के लिए ई प्रत्यय प्राकृत में किया जाता है। जैसे— राजन् से राज्ञी-राणी, ब्रह्मन् से ब्राह्मणी-बंभणी तथा हस्तिन् से हस्तिनी-हत्थिणी। अकारान्त शब्दों से ई-प्रत्यय —कुमार से कुमारी, काल से काली, हरिण से हरिणी, हंस से हंसी, सारस से सारसी आदि।।
संस्कृत के कुछ शब्दों से स्त्रीलिंगरूप बनाने के लिए ङीष् (ई) प्रत्यय के अतिरिक्त 'आनुक्' (आन्) का आगम भी करना पड़ता है। जैसे— इन्द्र से इन्द्राणी, रुद्र से रुद्राणी, भव से भवानी इत्यादि। प्राकृत में एतदर्थ ई-प्रत्यय से पूर्व 'आण' को जोड़ दिया जाता है। जैसे- इंदाणी, भवाणी, आयरियाणी इत्यादि। संस्कृत के अनुसार धर्मविधिपूर्वक विवाहित पत्नी को 'पाणिगृहीती भार्या' तथा अन्य विधि से विवाहिता पत्नी को पाणिगृहीता भार्या' कहते हैं, तदनुसार प्राकृत में भी दो रूप होते हैं— पाणिगहीदी, पाणिगहीदा। 'चन्दमुही-चन्दमुहा, गोरमुही-गोरमुहा, वज्जणहा-वज्जणही' आदि दो-दो रूप वाले शब्द प्राकृत में संस्कृत के नियमानुसार ही सिद्ध होते हैं। 5. बहुल संज्ञा/बाहुलकविधि
संस्कृत व्याकरण में बहुल' या 'बाहुलक विधि' के चार भेद बनाए गए हैं- 1. कहीं
प्राकृतविद्या अप्रैल-जून '2000
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