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________________ इस अंक के लेखक-लेखिकायें 1. पं० वासुदेव द्विवेदी शास्त्री – आप संस्कृत - प्राकृत भाषाओं के प्रकांड वयोवृद्ध विद्वान् एवं समर्पित शिक्षाविद् हैं । ज्ञाननगरी वाराणसी को केंद्र बनाकर आप विगत 60 वर्षों से अहर्निश संस्कृत-प्राकृत के प्रचार में संलग्न हैं । इस अंक में प्रकाशित 'प्राकृतविद्या - प्रशस्तिः' नामक संस्कृत कविता आपकी लेखनी से प्रसूत है । स्थायी पता – सार्वभौम संस्कृत प्रचार संस्थान, वाराणसी ( उ०प्र०) 2. डॉ० राजाराम जैन—आप मगध विश्वविद्यालय में प्राकृत, अपभ्रंश के ‘प्रोफेसर' पद से सेवानिवृत्त होकर श्री कुन्दकुन्द भारती जैन शोध संस्थान के निदेशक' हैं। अनेकों महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों, पाठ्यपुस्तकों एवं शोध - आलेखों के यशस्वी लेखक भी हैं। इस अंक के अन्तर्गत प्रकाशित 'इक्कीसवीं सदी : कातन्त्र- व्याकरण का स्वर्णयुग' एवं 'यशस्वी- सुत के पावन संस्मरण' नामक आलेखों के लेखक आप हैं । पत्राचार - पता — महाजन टोली नं० 2, आरा- 802301 ( बिहार ) 3. डॉ० देवेन्द्र कुमार शास्त्री — आप जैनदर्शन के साथ-साथ प्राकृत-अपभ्रंश एवं हिंदी भाषाओं के विश्वविख्यात विद्वान् एवं सिद्धहस्त लेखक हैं । पचासों पुस्तकें एवं दो सौ से अधिक शोध-निबंध प्रकाशित हो चुके हैं। संप्रति आप भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली में कार्यरत हैं। इस अंक में प्रकाशित 'आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रंथों की भाषा' नामक लेख आपकी लेखनी से प्रसूत है। स्थायी पता – 243, शिक्षक कालोनी, नीमच - 458441 ( म०प्र०) 4. डॉ० जानकी प्रसाद द्विवेदी —- वर्ष 1997 के 'आचार्य उमास्वामी पुरस्कार' से सम्मानित डॉ० द्विवेदी सारनाथ (वाराणसी) स्थित तिब्बती शिक्षण संस्थान' में संस्कृत के उपाचार्य पद पर कार्यरत हैं । 'कातंत्र - व्याकरण' के संबंध में आपके द्वारा किया गया शोधकार्य अद्वितीय है। इस अंक में प्रकाशित 'प्राकृत का संस्कृत से सामंजस्य' नामक आलेख आपकी लेखनी से प्रसूत है। स्थायी पता— एस०-19/134, ए०सी०- 1, जदीद बाजार, नदेसर, वाराणसी कैण्ट-2210021 5. डॉ० दयाचन्द्र साहित्याचार्य — संस्कृत - साहित्य - जगत् में आप एक मूर्धन्य विद्वान् के रूप में जाने जाते हैं, तथा जैनदर्शन, इतिहास एवं संस्कृति के क्षेत्र में भी आपका व्यापक अध्ययन है। इस अंक में प्रकाशित 'जैनदर्शन में रत्नत्रय की मीमांसा' लेख आपका है। स्थायी पता – प्राचार्य, श्री गणेश दि० जैन संस्कृत महाविद्यालय, लक्ष्मीपुरा, मोराजी, सागर- 470002 ( म०प्र० ) 6. अनूपचन्द न्यायतीर्थ —— आप वयोवृद्ध जैनविद्वान् एवं कवि हैं । इस अंक में प्रकाशित '2600वीं वीर जयंती' शीर्षक हिन्दी कविता आपके द्वारा लिखित है । स्थायी पता – 769, गोदिकों का रास्ता, किशनपोल बाज़ार, जयपुर-302003 ( राज० ) 00 110 प्राकृतविद्या + अप्रैल-जून '2000
SR No.521362
Book TitlePrakrit Vidya 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size9 MB
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