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________________ एकमात्र लक्ष्य विद्या की उपासना है। उन्होंने वेदों की गहराई को, ईसा की अनुभूतियों को समझा, कुरान-शरीफ की इबादतों को पढ़ा, नानक की गहराई को पहिचाना, पाश्चात्य विचारकों के चिन्तन को समझा; तब जाकर उन्होंने कहा कि “समाज सद्गुणों का समूह है।" शिष्टाचार का जहाँ सम्मान है, वहाँ आत्मशुद्धि है, उच्च-आदर्श है। भारतीय शिष्टाचार में उच्च-आदर्श और उच्च-क्रियायें हैं। चाहे रास्ता चलते हों, या अन्य कहीं भी हों। शालीनता उनके साथ रहती है। ___ आचार्य विद्यानन्द जी के समाज में आचार-विचार और गुणों की जहाँ प्रधानता है, वहीं बहुमुखी योग्यताओं का मूल्यांकन है। वे वर्ग भेद से परे ऐसे समाज की कल्पना करते हैं जिसमें चहुमुखी प्रतिभा हो, समाज-संरचना के लिए ज्ञानगुण पर आधारित क्रिया हो। वे श्रम और गुण —दोनों की बुनियाद को लेकर संतोष, समत्व, मैत्री और सहयोग पर बल देना चाहते हैं। उनके लम्बे जीवन की यात्रा का मूलमंत्र आत्मानुशासन है। बहुजन- हिताय, बहुजन-सुखाय का राजमार्ग है। आचार्य विद्यानन्द शुद्ध मनीषा और निर्मल आचार को महत्त्व दे रहे हैं। वे कहते हैं "आर्यों के शरीर में दूध नहीं भरा है, और म्लेच्छों के शरीर में कोई कीच नहीं है। सबके रुधिर का रंग लाल है। जो इतनी स्वच्छता से सोचता है, वह धार्मिक है; और जो भेदभाव की संकीर्णता में लिप्त है, वह साम्प्रदायिक है।" आवश्यकताओं के साथ समुन्नत मार्ग:- आचार्य विद्यानन्द ने लोकजीवन को समझा। उन्होंने अन्तर और बाह्य दोनों ही रूपों की पवित्रता को परखा और दोनों को ही ऊँचाई पर जाकर अपनी विमल वाणी से जनजीवन में एक क्रान्ति उपस्थित की। उन्होंने धर्मांधता, अंधानुकरण आदि से दूर होकर जो कुछ भी कार्य किया, वह अत्यंत ही उदार एवं स्मरणीय बना। उन्होंने भगवान् महावीर के 2500वें निर्वाण-महोत्सव को मनाने के लिए जो शंखनाद किया, उससे सम्पूर्ण विश्व में महावीर के सिद्धान्तों की दृष्टि फैली। उनका यह एक ऐसा प्रयास भी था जो एकता के सूत्र में बाँधने के लिए सर्वोपरि माना गया, वह था विश्वधर्म के समस्त धार्मिक नेताओं को एक मंच पर लाना। और भी उत्तम प्रयास हुआ 'समणसुत्त' नामक ग्रन्थ प्रणयन का, जिसमें आचार्य विनोबा भावे जैसे आदर्श सर्वोदयी नेता की सहभागिता प्राप्त हुई। ___आचार्य विद्यानन्द ने महामस्तकाभिषेक की क्रियान्विति की अर्थात् दक्षिण के श्रवणबेल्गोल- स्थित गोम्मटेश बाहुबली की 58 फुट की प्रतिमा के अभिषेक का मंगलमय कार्य हुआ। मध्यप्रदेश के बड़वानी बावनगजा एवं अन्य स्थानों पर अपनी सांस्कृतिक चेतना से समाज को मूर्तिकला, स्थापत्यकला, वास्तुकला आदि को सुरक्षित करने का निर्देश दिया। उन्होंने इन्दौर के पास एक पहाड़ी पर गोम्मटगिरि जैसे सार्वभौमिक, प्राकृतविद्या-जनवरी-मार्च '2000 4059
SR No.521361
Book TitlePrakrit Vidya 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size14 MB
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