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________________ आचार्य विद्यानन्द जी की सामाजिक चेतना __-डॉ० (श्रीमती) माया जैन भारतीय संस्कृति अध्यात्म-प्रधान संस्कृति है। इस संस्कृति में साधना, तपश्चर्या आदि के बल पर जहाँ आत्मकल्याण की बात कही गई, वहीं दूसरी और भटके हुए समाज को एक ऐसी दृष्टि प्रदान की गई, जो समग्र जीवन का स्वच्छ दर्पण है। जैन सन्तों की चिन्तनशील अभिव्यक्ति एवं साधना ने सत्यम्, शिवम् और सुन्दरम् की विराट् अभिव्यक्ति प्रदान की। इस पृथ्वी पर दिगम्बर वेषधारी आचार्य एवं मुनि अनेक हुये हैं, हो रहे हैं और होते रहेंगे। ये सभी चलते-फिरते तीर्थ हैं, जिनके द्वारा जैनधर्म को अक्षुण्ण बनाया गया और समाज के लिए इन्हीं ने आत्मकल्याण और लोककल्याण की भावना प्रदान की है। इनके जनजागरण की विचारधारा ने धार्मिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक धारणाओं की जटिलता को हटाकर अत्यंत सरल सहज और सौम्य बनाया। जैन सन्तों ने जीवन और जगत् —दोनों के विषय में पर्याप्त प्रकाश डाला। उनकी विचारधारा ने सम्पूर्ण समाज को त्याग की उदार भावना दी और अहिंसामय जीवन जीने की कला भी बतलाई। ऐसे जैन संस्कृति के अनेक दैदीप्यमान सूर्य हुए हैं, उनमें आचार्य विद्यानन्द अपने चिन्तन से राष्ट्र को विश्वबन्धुत्व की भावना प्रदान कर रहे हैं। आचार्य विद्यानन्द जी का विराट् व्यक्तित्व:- जिस संत ने स्वातन्त्र्यपूर्व भारत की स्थिति को देखा और डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, डॉ० राधाकृष्णन, डॉ० जाकिर हुसैन, वी०वी० गिरि, ज्ञानी जैलसिंह, शंकर दयाल शर्मा, के०आर० नारायणन आदि राष्ट्रपति तथा पंडित नेहरू, शास्त्री जी, इंदिरा गांधी, मुरार जी देसाई, चन्द्रशेखर, वी०पी० सिंह, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेई, इन्द्र कुमार गुजराल, नरसिंह राव आदि राष्ट्र के प्रधानमंत्री भी जिनके व्यक्तित्व से प्रभावित थे। जिनकी विचारधारा ने राष्ट्र के हित के लिए बहुत कुछ कहा, बहुत कुछ समझाया तथा जिन्होंने समय की शिला पर समाज की तस्वीर तराशने का श्रमसाध्य कार्य किया। उनके आकार-प्रकार आदि का छायांकन करना कठिन है। जिनकी विचारधारा में अनुभवों का खजाना है, अनुशासन की क्रमबद्धता है। अहिंसा का सर्वोत्कृष्ट शिष्टाचार है। जिनकी गूंज में दया, क्षमा, सहिष्णुता, पवित्रता, मृदुता, नम्रता आदि तो व्याप्त हैं ही, साथ ही उनके जीवन का 00 58 प्राकृतविद्या-जनवरी-मार्च '2000
SR No.521361
Book TitlePrakrit Vidya 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size14 MB
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