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________________ कि “प्राकृतभाषा भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है और इसका अनादर भारतीय संस्कृति का अनादर है। यह भाषा मात्र जैन समुदाय तक ही सीमित नहीं है, अपितु इसका बहुत विशाल क्षेत्र है। सम्राट अशोक के तथा भारत के अन्य प्राचीनतम शिलालेख प्राकृतभाषा में ही उपलब्ध हैं। वस्तुत: यह भाषा भारतीय समाज को प्रतिबिंबित करती है। इसलिये यदि सामान्य जनता तक पहुँचना है, तो प्राकृतभाषा का अध्ययन आवश्यक है। आज यदि इसकी उपेक्षा करेंगे तो भविष्य हमें कभी माफ नहीं करेगा।" संगोष्ठी में प्रसिद्ध वैदिक विद्वान् डॉ० हृदयरंजन शर्मा, डॉ० गंगाधर पण्डा, डॉ० वशिष्ठ नारायण सिन्हा, प्रसिद्ध गांधीवादी श्री शरद कुमार साधक, डॉ. विजय कुमार, सरयूपारी ब्राह्मण परिषद् के महामंत्री श्री नरेन्द्र राम त्रिपाठी आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये। -डॉ० फूलचन्द्र प्रेमी, वाराणसी ** लेखकगणों आवश्यक निवेदन पूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज 'नियम सल्लेखना' की मर्यादाओं के अनुरूप क्रमश: जनसम्पर्क की प्रवृत्तियों से दूर हो रहे हैं। इसीके अन्तर्गत पूज्य आचार्यश्री का आदेश है कि उनके नाम से या उनकी स्तुति/प्रशंसा आदि में कोई लेख, कविता आदि लिखकर न भेजें। यदि ऐसी रचनायें आयीं, तो हमें खेदपूर्वक उन्हें अस्वीकृत करना पड़ेगा। पूज्य आचार्यश्री का आदेश सभी भक्तजन शिरोधार्य करेंगे। ऐसा विश्वास है। ___-सम्पादक ** सभाशास्त्र और वक्तृत्व "सभा वा न प्रवेष्टव्या प्रविष्टश्च वदेद् वृष । अबुवन् विब्रुवन् वापि नरो भवति किल्बिषी।।" – (मनु० 8/13) अर्थ:- या तो सभा-सम्मेलन में प्रवेश नहीं करना अच्छा है और यदि सभाओं में प्रवेश करना चाहते ही हैं, तो वहाँ धर्म और मर्यादायुक्त 'वचन' बोलना चाहिये। जो वक्ता या तो मौन रहता है, अथवा तथ्य को विकृत करके बोलता है, तो वह महान् पाप का भागी होता है। मुनि, उपाध्याय और आचार्यों के जिह्वा पर तीन लगाम लगे हैं (सत्यमहाव्रत, भाषासमिति और वचन गुप्ति) इन तीन बंधन को तोड़ना महान् अनर्थ का कारण है। "क्षिपेद् वाक्यशरान् घोरान् न पारुष्यविषप्लुतान् । वाक्पारुष्यरुषा चक्रे भीम: कुरुकुलक्षयम् ।।" - (शागधर पद्धति, 1512) अर्थ:- कठोरता का विष मिश्रित करते हुए वाक्यरूप बाण किसी भी व्यक्ति पर नहीं छोड़ने चाहिये, क्योंकि दुर्योधन के कठोर वाक्यों से क्रोधित हुए राजकुमार भीम ने कुरुकुल का संहार कर दिया। * * 00 108 प्राकृतविद्या-जनवरी-मार्च '2000
SR No.521361
Book TitlePrakrit Vidya 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size14 MB
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