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________________ आपके दुर्लभ वाद्ययंत्रों की एक स्वतंत्र संगीत-वाद्य दीर्घा' आपके नाम से दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में है, जिसका उद्घाटन 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री इंदिरा गांधी ने किया था। यह इस श्रेणी की देश की विशालतम संग्रहदीर्घा है। ___ दिगम्बर जैन कुल की गौरवमूर्ति श्रीमती शरनरानी बाकलीवाल एक धर्मनिष्ठ सात्त्विक महिलारत्न हैं। आपकी पूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज में विशेष आस्था है। इस वर्ष के पद्मभूषण' सम्मान से सम्मानित किये जाने पर प्राकृतविद्या-परिवार की ओर से आपका हार्दिक अभिनंदन है। –सम्पादक ** आचार्यश्री विद्यानन्द जी के 'पीयूष-पर्व' पर ब्र० कमलाबाई जी को 'साहू श्री अशोक जैन-स्मृति पुरस्कार' समर्पित परमपूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज का 75वां जन्मदिवस 'पीयूष-पर्व' के रूप में लालकिला के सामने परेड ग्राउण्ड के आचार्य कुन्दकुन्द सभा मण्डप में आयोजित एक समारोह में मनाया गया। इसी अवसर पर शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए श्री दिगम्बर जैन आदर्श महिला महाविद्यालय श्रीमहावीरजी की संस्थापिका ब्र० कमलाबाई जी को जैन समाज बड़ौत (उ०प्र०) द्वारा स्थापित द्वितीय ‘साहू अशोक जैन स्मृति पुरस्कार' प्रदान किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक श्री कु० सी० सुदर्शन ने आचार्यश्री को श्रीफल भेंटकर अपनी विनयांजलि अर्पित करते हुए कहा कि "विश्व में केवल भारत ही एकमात्र ऐसा आध्यात्मिक देश है जहाँ इसे कर्मभूमि के रूप में देखा जाता है। यहाँ सभी धर्मों के संतों ने भारतभूमि को पवित्र माना है। भारतीय संस्कृति त्याग और तपस्या की रही है। 1947 में हम भले ही आजाद हो गए, परंतु मानसिक रूप से स्वतंत्र नहीं हुए। इसके लिए मैकाले की शिक्षा पद्धति मुख्य कारण है। यदि हमने भारतीय मूल्यों को अपनाया होता, तो आज जो हिंसा एवं असत्य का बोलबाला है, वह न होता। हमारी शिक्षा भारतीय संस्कृति के अनुरूप होनी चाहिये।” उन्होंने स्पष्ट किया कि “जब तक पूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज जैसे संतों से मार्गदर्शन लेकर भारतीय संस्कृति एवं परम्पराओं के अनुरूप इस देश की व्यवस्था नहीं चलायी जायेगी; तब तक भारतवर्ष अपने खोये हुए गौरव एवं प्रतिष्ठा को पुन: प्राप्त नहीं कर सकेगा। एक ऐसी वयोवृद्ध शिक्षाविद् के सम्मन का पुण्यकार्य जो आज पूज्य आचार्यश्री के पावन सान्निध्य में हुआ है, वह उस शैक्षिक व्यवस्था का सम्मान है, जिसमें भारतीय सांस्कृतिक परम्परा के मूल आदर्श सुरक्षित हैं।" पूज्य आचार्यश्री ने अपने मंगल आशीर्वचन में कहा कि “यदि हमने अनुशासन का पालन किया होता, तो देश कहीं का कहीं पहुँच जाता।" चाणक्य के 'अर्थशास्त्र' की तुलना अपने कमण्डलु से करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि “इसका आय का रास्ता बड़ा एवं व्यय का छोटा है। यही अर्थशास्त्र का मुख्य नियम है; परंतु आज गलत नीतियों ने देश को प्राकृतविद्या-जनवरी-मार्च '2000 00 103
SR No.521361
Book TitlePrakrit Vidya 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size14 MB
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