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________________ उमास्वामी पुरस्कार' दिये जाते हैं। इनमें सम्मान्य विद्वान् को एक-एक लाख रुपयों की मानधन-राशि के साथ प्रशस्तिपत्र, स्मृतिचिह्न, शॉल, श्रीफल आदि भव्य समारोह में गरिमापूर्वक समर्पित किये जाते हैं। __ प्राकृतभाषा एवं साहित्य तथा जैनदर्शन के क्षेत्र में उच्च अध्ययन एवं शोधकार्य करनेवाले मेधावी एवं जरूरतमंद छात्रों को इस संस्थान की ओर से प्रतिवर्ष छात्रवृत्तियाँ भी दी जाती हैं। इसमें जैन एवं जैनेतर सभी वर्गों के छात्र-छात्राओं को समानरूप से योग्यता के आधार पर छात्रवृत्तियाँ दी जाती हैं, ताकि उन छात्र-छात्राओं को इन विद्याओं के अध्ययन में प्रोत्साहन मिले और उनका भविष्य अच्छा बन सके। इसके अतिरिक्त समाज में तत्त्वज्ञान के प्रचार-प्रसार की दृष्टि से जैनतत्त्वज्ञान के अच्छे ज्ञाता विद्वान् भी इस संस्था से जुड़कर कार्य कर रहे हैं। संस्थान के निदेशक प्रो० (डॉ०) राजाराम जैन, जो कि अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् के अध्यक्ष भी हैं, विभिन्न महत्त्वपूर्ण अवसरों पर समाज को अपने वैदुष्य से निस्पृहभाव से लाभान्वित कराते रहते हैं। संस्थान के उपनिदेशक डॉ० सुदीप जैन भी राजेन्द्र नगर आदि क्षेत्रों में कई वर्षों से शास्त्र-स्वाध्याय एवं तत्त्वचर्चा के माध्यम से धर्म-प्रभावना करते हुए महती समाजसेवा कर रहे हैं। जैन विधि-विधान, वास्तुशास्त्र एवं जैन ज्योतिष की दृष्टि से इस संस्था में समाज की सेवा करने के लिए एक स्वतंत्र विभाग कार्यरत है। इन विद्याओं के अच्छे विद्वान् डॉ० जयकुमार उपाध्ये वर्षों से समाज की महती आवश्यकता की पूर्ति कर रहे हैं। संस्था से जुड़े एक अन्य विद्वान् डॉ० वीरसागर जैन भी विगत कुछ दिनों से ग्रीनपार्क के दिगम्बर जैन मंदिर में प्रतिदिन प्रात:काल शास्त्र-स्वाध्याय कर धर्मप्रभावना कर रहे हैं। समाज में यदि किसी भी व्यक्ति को सल्लेखना, संबोधन आदि की स्थिति होती है, तो संस्था बिना किसी अपेक्षा के यथासंभव विद्वानों का सान्निध्य उपलब्ध कराती है, ताकि लोगों का धर्म के प्रति आकर्षण बढ़े और पारस्परिक सौहार्द भी बढ़े। सत्साहित्य का प्रकाशन करके तथा उसे यथासंभव समाजसेवा की भावना से उपयुक्त सुपात्रों तक पहुँचाकर भी इस संस्था ने अत्यधिक उल्लेखनीय कार्य किये हैं। अब तक पच्चीस से अधिक ग्रंथों/पुस्तकों की लाखों प्रतियाँ संस्था द्वारा प्रसारित की जा चुकी हैं। • संस्था में संतों का सान्निध्य भी प्राय: उपलब्ध रहता है, जिससे यहाँ दर्शनार्थियों एवं धर्मानुरागियों का सम्पर्क निरन्तर बना रहता है। साथ ही वातावरण की पवित्रता के साथ-साथ निरन्तर ज्ञान एवं तप की सुगंध व्याप्त रहती है। ___ हमारे आचार्यों की प्रियभाषा, भारत की मूलजनभाषा एवं आगमग्रंथों की माध्यमभाषा 'प्राकृत' की प्रभावना की दृष्टि से इस संस्था के द्वारा श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ (मानित विश्वविद्यालय), नई दिल्ली-110016 में तीन वर्ष पूर्व प्राकृतभाषा प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99 007
SR No.521355
Book TitlePrakrit Vidya 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1999
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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