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________________ यूनानियों को मार भगाया था। सम्राट् खारवेल ने विजययात्रा की थी और श्रमणों पर अत्याचार करनेवाले पुष्यमित्र पर दो बार आक्रमण कर उसे सबक सिखाया था। उसके शिलालेख में मगध पर आक्रमण का विवरण उपलब्ध है। खेद है कि जैनधर्म की अहिंसा संकल्पना को लेखक महोदय भलीप्रकार समझ नहीं पाये। महावीर के अनुयायी:-लेखक ने महावीर के संघ की (जिसमें मुनि, आर्यिका, मोक्षमार्ग के इच्छुक श्रावक और श्राविका होते हैं और वे साधनापथ के व्रत क्रमश: ग्रहण करते हैं) श्रावक-संख्या को अनुयायियों की संख्या बताकर अच्छा नहीं किया। तत्कालीन सभी जैन-गृहस्थों ने महावीर के साथ भ्रमण नहीं किया था। आज भी मुनिसंघ के साथ बहुत कम लोग भ्रमण करते हैं। परंपरा आज भी जीवित है। ___ मूर्तिपूजा और जैन:-विद्वान् लेखक P.V. Kane : History of Dharmashstra नामक पुस्तक कृपया देखें। उसमें उन्हें यह उल्लेख मिल जाएगा कि हिंदुओं ने मूर्तिपूजा जैनों से सीखी। वैदिकजन तो आज भी आहुति देते हैं। ___मठों को दान:-विद्वान् लेखक क्या यह कह सकते हैं कि हिंदू मठों को राजाओं से दान नहीं मिलता था। भक्ति-आंदोलन के कारण जब जैनों पर अत्याचार हुए, तब जैन मूर्तियों, मंदिरों और शास्त्रों की रक्षा के लिए मठों की परंपरा चली। तमिल में लिखित 'परियपुराणम्' में उन्हें यह लिखा मिल जाएगा कि जैनों के ग्रंथ तो पानी में डूब गए और शैव-ग्रंथ तैर गए। तमिलनाडु में जैनों पर जो अत्याचार एक ही दिन में 8000 मुनियों के प्राण लेकर किए गए; उसके fanaticism की निंदा प्रो० नीलकंठ शास्त्री ने अपने ‘दक्षिण भारत के इतिहास' में की है। जैनमठ जिनधर्मानुयायियों के दान पर ही मुख्यरूप से चलते हैं। कुछ जैन राजाओं ने अतीत में कुछ मठों को दान दे भी दिया, तो इसमें क्या आश्चर्य? हिंदू मठ भी तो दान लेते रहे हैं। चंद्रगुप्त से पहले दक्षिण में जैनधर्म:-विद्वान् लेखक का यह कथन सत्य नहीं है कि चंद्रगुप्त मौर्य से पहले दक्षिण भारत में जैनधर्म का प्रवेश नहीं हुआ था। उनकी जानकारी के लिए दक्षिण भारत में जैनधर्म-संबंधी कुछ मोटी बातें यहाँ दी जाती हैं (1) यदि कर्नाटक गजेटियर' उठाकर देखें, तो यह उल्लेख मिलेगा कि हेमांगद देश के राजा जीवंधर ने महावीर से मुनिदीक्षा ली थी। यह घटना चंद्रगुप्त मौर्य से पहले की है। . (2) बौद्धग्रंथ 'महावंसो' में उल्लेख है कि "श्रीलंका के राजा पांडुकाभय ने निर्ग्रन्थों के लिए एक मंदिर और एक भवन बनवाया था।" यह राजा चंद्रगुप्त मौर्य का समकालीन था। श्रीलंका में जैनधर्म पांडुकाभय से कम से कम एक सौ वर्ष पूर्व पहुँचा हो, तो भी ईसापूर्व पाँचवी सदी में जैनधर्म की विद्यमानता वहाँ सिद्ध होती है। (3) केरल सरकार के गजेटियर में जैनधर्म के प्रसंग में Barnett का यह उल्लिखित किया गया है कि All civilization in the south belongs to the Jains. प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99 40 29
SR No.521355
Book TitlePrakrit Vidya 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1999
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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