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________________ छद्मवेशधारी पुरुष के द्वारा जैनधर्म का वर्णन सुनकर वेन उन्मार्गगामी बन जाता है। तब वैदिक सप्तर्षियों के द्वारा उसकी भुजाओं का मंथन होता है, जिससे पृथु की उत्पत्ति होती है।” अत्यंत प्राचीनकाल में जैन राजा की यह दशा हुई। हिंदू-मान्यता के अनुसार इस धरती का पृथ्वी नाम इसी 'पृथु' के नाम पर है। ब्रह्माजी ने ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का स्थान निश्चित कर दिया। उसके बाद के श्लोक में यह उल्लेख है कि "88 हजार ऊर्ध्वरेता मुनि हैं, जिनका स्थान गुरुकुलवासियों जैसा है।" (विष्णुपुराण, प्रथम अंश, अध्याय 6, श्लोक 36) ये उर्ध्वरेता जैन मुनि संभव हैं। _ 'भागवत' में भी 'भगवान् अजित' की चर्चा है; किंतु वहाँ ‘अजित' का अर्थ श्रीहरि कर दिया गया है। (स्कंध 8, अध्याय 5, श्लोक 24) डॉ० रायचौधरी ने अपने ग्रंथ History of Vaishnavism में यह मत व्यक्त किया है, “Lord Krishna and Neminath were cousins. Skandpuran also mentions श्याममूर्ति दिगंबर: नेमिनाथ:” _ये नेमिनाथ की ऐतिहासिकता का प्रमाण है। पार्श्वनाथ और महावीर की ऐतिहासिकता तो स्वीकार कर ही ली गई है। स्वामी कर्मानंद ने अपनी पुस्तक 'धर्म का आदि-प्रवर्तक' (1940 में अंबाला से प्रकाशित) में लिखा है “बाल्यकाल से वैदिक साहित्य के स्वाध्याय का सौभाग्य प्राप्त होने के कारण मैंने उस गहन सागर में अनेक बार गोते लगाए हैं... मेरा अपना पूर्ण विश्वास है कि यदि प्रयत्न किया जाये, तो भगवान् अरिष्टनेमि तक सभी तीर्थंकरों के विषय में वैदिक साहित्य से सुंदर सामग्री उपलब्ध हो सकती है।" (दो शब्द) स्वामीजी ने अनेक उद्धरण दिए हैं; किंतु विस्तारभय के कारण यहाँ केवल उनका मत दे दिया गया है। तीर्थंकर और पुरातत्त्व:-जैन तीर्थंकरों के संबंध में पुरातात्त्विक साक्ष्य की मांग की जाती है। इस विषय पर विद्वान् लेखक का ध्यान निम्न कुछ तथ्यों की ओर आकर्षित किया जाता है (1) हड़प्पा से प्राप्त सील कं० DK 3505 देखने की कृपा करें। इस सील के नीचे लिखा है, “A nude terracota figure (front view)" यह मूर्ति खड़ी हुई अवस्था में है। जैन मूर्तिशास्त्र के अनुसार 'कायोत्सर्ग मुद्रा' में तीर्थंकर हैं। उसके हाथ घुटनों तक हैं (आजानुलम्ब बाहु) हाथों के पंजे क्षतिग्रस्त हैं, फिर भी हाथ घुटनों तक आये स्पष्ट दिखते हैं। मूर्ति-निर्माण-संबंधी जैनेतर ग्रंथों में भी तीर्थंकर-मूर्ति-निर्माण का यह लक्षण मिल जाएगा। मूर्ति के मस्तक का कुछ भाग टूटा हुआ है तथा मूर्ति नग्न है। __(2) भारतीय पुरातत्त्व विभाग के भूतपूर्व डायरेक्टर जनरल श्री टी०एन० रामचंद्रन् का लेख 'Harappa and Jainism' ग्यारह पृष्ठों का है। यह कुंदकुंद भारती, नई दिल्ली से प्रकाशित है। उन्होंने कला, पुरातत्त्व, ऋग्वेद आदि अनेक दृष्टियों से हड़प्पा से प्राप्त male torsos का गहन विवेचन किया है। ऋग्वेद की दो-तीन ऋचाओं के 0022 प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '99
SR No.521355
Book TitlePrakrit Vidya 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1999
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size10 MB
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