SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ “तरुणीमहाथट्टसंघट्टतुत आहरणमणिमंडिया चउप्पहा । छड्डियपडिपट्ट-पट्टोलपंडीपहावंतनेत्तेहिं संछइयमंडववियाणेसु लंबंतमुक्ताहलादाम-अल्लंतमाणिक्क झुंबुक्कसक्काउहायार-पसरंतकस्णावलीजालचित्तलिधरपंगणं । पहय पडुपडह पडिरडियदडिडंबरं, करडतडतण-तडिवडण-फुरियंबरं । घुमुघुमुक्क-घुमुघुमियमद्दलवरं, सालकंसालसलसलिय-सुललियसरं। डक्कडमडक्क-डमडमियडमरुब्भडं, घंट-जयघंटटंकाररहसियभडं । ढक्क त्रं त्रं हुडुक्कावलीनाइयं, रुं जगुर्जत-संदिण्ण-समधाइयं । थगगद्ग-थगगदुख-थगगदुग सज्जियं, करिरिकिरि-तट्ठकिरिकिरिरिकिर वज्जियं । तरिवरिवतरिव-तक्खि-तरिवतत्तासुंदरं, तदिदिबुदि-खुदखुदखुंदभामासुरं। थिरिरिकटतट्टकटथिरिरिकटनाडियं, किरिरितटखंदतटकिरिरि-तडताडियं । पहय-समहत्थसुपसत्यवित्यारियं, मंगलं गंदिघोसं मणोहारिय । तूरसद्देण चलियं महाकलयलं, रायराएण सह चाउरंगं बलं ।” ___ इसीप्रकार करकण्डु चरिउ, भविसयत्तकहा, सुगन्धदहमीकहा, मयणपराजय आदि ग्रन्थों में भी संगीत के प्रमुख सिद्धान्त आए हैं। सन्दर्भ-सूची:1. 'पउमचरियं', प्राकृत टेक्सट सोसाइटी, सिरीज, वाराणसी, डॉ० एच० जैकोबी द्वारा सम्पादित, सन् ई०, पृ० 213, पद्य संख्या 5। 2. 'पउमचरियं' प्राकृत टेक्स्ट सोसाइटी सिरीज वाराणसी, डॉ० एच० जैकोबी द्वारा सम्पादित, सन् 1962 ई०, पृ० 260, पद्य-संख्या 84। 3. 'पासणाहचरिउ', प्राकृत टेक्स्ट सोसाइटी सिरीज, वाराणसी, सन् 1965 ई०, प्रो० प्रफुल्लकुमार मोदी द्वारा सम्पादित, पृ० 62, संधि 8/7। 4. वही, पृ० 67, संधि 8/12। 5. 'जंबूसामिचरिउ', 4/91 6. 'जंबूसामिचरिउ', भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, पृ० 97, पद्य 5-6। -(साभार उद्धृत, संगीतशती, पृष्ठ 809-84) जैब-ज्योतिष के सम्बन्ध में डॉ0 हजारीप्रसाद का कथन है कि _.....इस बात से स्पष्ट प्रमाणित होता है कि 'सूर्यप्रज्ञप्ति' ग्रीक-आगमन से पूर्व की रचना है.... जो हो, सूर्य आदि को द्विव्यरूप प्रदान अन्य किसी जाति ने किया हो या नहीं, इसमें कोई सन्देह नहीं कि जैन-परम्परा में ही इसको वैज्ञानिकरूप दिया गया है। शायद इसप्रकार का प्राचीनतम उल्लेख भी जैन शास्त्रों में ही है।...... जैनधर्म कई बातों में आर्यपूर्व जातियों के धर्म और विश्वास का उत्तराधिकारी है।" __-(तीर्थंकर महावीर, विजयेन्द्रसूरि, पृष्ठ 41-42) ** , प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर'98 0085
SR No.521353
Book TitlePrakrit Vidya 1998 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1998
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy