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________________ का वर्णन किया है। इन अपभ्रंश ग्रंथों में वाद्य-वृन्द और गायक-वृन्दों का पूर्णतया कथन आया है। वीणा-वादन परम मांगलिक माना गया है। 'गन्धर्वशास्त्र' के अन्तर्गत स्वर, ताल और पद इन तीनों का निर्देश है। स्वर के अन्तर्गत, स्वर, श्रुति, ग्राम, मूर्च्छना, स्थान, साधारण, अठारह जातियाँ, चार वर्ण, अलंकार तथा गीतिका का समावेश माना गया है.। ताल में आवाप, निष्काम, विक्षेप, प्रवेशक आदि एवं पद में स्वर, व्यंजन, वर्ण, संधि समाहित हैं। पद्मकीर्ति ने विभिन्न वाद्यों और ध्वनियों का अपने 'पासणाहचरिउ' में उल्लेख किया है “महाणंदिणं णंदिघोसं सुघोसं झुझूवं झिझीवं रणंतं ठणंटं। । वरं सुंदरं सुंदरंगं वरंगं पसत्थं महत्थं विसालं करालं ।। हयाटट्टरी मद्दलं ताल कंसाल उप्फाल कोलाहलो ताबिलं । काहलि भेरि भंभोरि भंभारवं भासुरा वीणा-वंसा, मुटुंगा रओ।। सूसरो संख-सद्दो हुडुक्का कराफालिया झल्लरी रुजं सद्दालओ। बहु-विह-तुर-विसेसहिं मंगल-घोसहिं पडिबोहिय गब्भेसरि। उट्टिय थिय सीहासणि पवर-सुवासिणि वम्मदेवि परमेसरि।।" इस काव्य-ग्रन्थ में विभिन्न वाद्यों के साथ गीतों और अभिनय का कथन है। पार्श्वनाथ के जन्माभिषेक के अवसर पर जो देवों ने संगीत प्रस्तुत किया है, वह आज की संगीत-गोष्ठियों से अधिक महत्त्वपूर्ण है। विभिन्न वादक गायकों की संगति करते हैं और उनके स्वर के अनुसार वाद्यों का स्वर उत्पन्न करते हैं "तहिं कालि विविह हय पवरतर, भविया-यणज्जण-मण-आस-पूर। केहिमि आऊरिय धवल संख, पडु पडह घंट हय तह असंख ।। केहिमि अप्फालिय महुर-सद्द, ददुरउ भेरि काहल मउद्द। केहिमि उव्वेलिउ मरह-सत्थु, णव रसहिं अट्ठ-भावहिं महत्थु ।। केहिमि आलविउ वीण-वाउ, आढत्तु गेउ सूसरू सराउ। केहिमि उग्घोसिउ चउपयारू, मंगलु पवित्तु तइलोय-सारु ।। केहिमि किय सत्थियवर चउक्क, बहुकुसुम-दामगयण-यल-मुक्क। केहिमि सुरेहिं आलविविगेउ, णच्चिउ असेसु जम्माहिसेउ।।" वीर कवि ने वीरता की वृद्धि करनेवाली वाद्य और गीत-ध्वनि का सुन्दर चित्रण किया है। युद्ध के वाद्यों को सुनकर कायर व्यक्ति भी शूरवीर हो जाते थे और उनके हृदय में भी वीरता की लहर उत्पन्न हो जाती थी। इस ग्रन्थ में पटह, तरड, मरदल, वेणु, वीणा, कंसाल, तूर्य, मृदंग, दुन्दुभि, घंटा, झालर, काहल, किरिरि, ढक्का, डमरू, हुडुक्का, तक्खा, खुन्द, ततखुन्ड आदि वाद्यों के नाम आए हैं। इन ध्वनियों का निर्देश भी 'जम्बूसामि चरिउ' की पंचम संधि में किया गया है 0084 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर'98
SR No.521353
Book TitlePrakrit Vidya 1998 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1998
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size3 MB
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