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विशेष प्रशिक्षण-पाठ्यक्रमों का चलाना एवं उनके निमित्त आदर्श मार्गदर्शिका के रूप में 'प्रतिष्ठा प्रदीप' नामक इस प्रमाणिक एवं सुव्यवस्थित कृति का निर्माण किया जाना वास्तव में एक अनन्य योगदान है।
इसमें आगत कतिपय तथ्य तो समाज के प्रत्येक व्यक्ति को सीखने योग्य हैं। यथा-"सूर्य के दक्षिणायन' रहने पर पंचकल्याणक प्रतिष्ठायें कदापि नहीं करनी चाहिये। विशेषज्ञ विद्वान् से शुद्ध मुहूर्त लिए बिना मनमर्जी से पंचकल्याणक प्रतिष्ठायें नहीं करानी चाहिये । तथा भगवान् के माता-पिता नहीं बनाने चाहिये।" यदि इन बातों का कोई उल्लंघन करता है, तो वह वज्रमूर्खता का कार्य करता है तथा इससे होने वाली बाधाओं एवं धर्म की मर्यादा के उल्लंघन से वह घोर पाप का बंध करता है। ___ यह कृति मुद्रग की दृष्टि से जितनी नयनाभिराम एवं दीर्घजीवी है, विषय-सामग्री की दृष्टि से भी उतनी ही महनीय एवं सर्वांगीण है। साथ ही इसमें विषयों का व्यवस्थित क्रमबार प्रस्तुतीकरण एवं अपेक्षित निर्देशों की यथास्थान उपलब्धि विशेषत: उल्लेखनीय है। विद्वद्वर्य पं० नाथूलाल जी शास्त्री जैसे वरिष्ठतम विद्वान् द्वारा लिखे जाने से इसकी प्रामाणिकता स्वत: असन्दिग्ध हो गयी है। साथ ही पूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज का 'आशीर्वचन' इस तथ्य को और अधिक पुष्ट करता है। - इसके परिशिष्ट में विविध यंत्रों के प्रामाणिक चित्रों का मुद्रण इसका उपादेयता को और अधिक वृद्धिंगत करता है। अन्य अपेक्षित रंगीन चित्रों का भी समुचित ढंग से मुद्रण हुआ है। लेखन के साथ-साथ संपादन शैली का वैशिष्ट्य इसमें भलीभाँति लक्षित है। .
प्रत्येक विद्वान्-विदुषी को तो यह अनिवार्यत: संग्रहणीय है ही, समाज के प्रत्येक जिनमंदिर, पुस्तकालय एवं संस्थाओं में भी इसकी प्रतियाँ अवश्य रहनी चाहिये; ताकि अपेक्षित जिज्ञासाओं का तत्काल प्रामाणिक समाधान मिल सके। इस महनीय कार्य के लिए लेखक एवं प्रकाशक हार्दिक अभिनंदनीय हैं।
–सम्पादक **
पुस्तक का नाम - अंगकोर के पंचमेरु मंदिर लेखक व सम्पादक - डॉ० जिनेश्वर दास जैन प्रकाशक - श्री भारतवर्षीय दि० जैन (तीर्थसंरक्षिणी) महासभा, ऐशबाग,
लखनऊ (उ०प्र०) मूल्य - साठ रुपये, पृष्ठ संख्या मूल्य 56 (4 आर्ट पेपर सहित) संस्करण - प्रथम, जनवरी 1999 ई०, डिमाई साईज़, पेपर बैक
कम्बोडिया में भारतीय संस्कृति के प्राचीनरूप उपलब्ध होते हैं। प्राचीन वृहत्तर भारतवर्ष में से कई देश आज स्वतंत्र हो गये हैं, यथा—कैकेय प्रदेश (अफगानिस्तान)
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प्राकृतविद्या+ अक्तूबर-दिसम्बर'98