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काव्यानुवादः
आतम झंखे छूटकारो (गूर्जरमूलम्)
-प्रवीण देसाई
(चन्दन सा बदन.....सरस्वतीचन्द्र) बंधन बंधन झंखे मारुं मन,
पण आतम झंखे छूटकारो, मने दहेशत छे आ झघडामां, ___थइ जाय पूरो ना जन्मारो,
बंधन बंधन... मधुरां, मीठां ने मनगमतां,
पण बंधन अंते बंधन छे, लई जाय जनमना चकरावे,
एबुं दुःखदायी आलंबन छे, हुँ लाख मनायूँ मनडाने पण एक ज एनो 'उंहकारो'
बंधन बंधन... अकळायेलो आतम के छे, ___ मने मुक्तिभूमिमां भमवा दो, ना राग रहे ना द्वेष रहे,
एवी कक्षामां मने रमवा दो, मित्राचारी आ तनडानी, बेचार घडीनो चमकारो,
बंधन बंधन...
वरसो वीत्यां, वीते दिवसो,
आ बे शक्तिना घर्षणमां, मने शुं मलशे विष के अमृत, ___आ भवसागरना मंथनमा ? क्यारे पंखी आ पिंजर, करशे मुक्तिनो टहुकारो ?
___ बंधन बंधन...