SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृतद्वयाश्रयमहाकाव्यम् कइमं मज्झिम-लोए रिऊहिँ चत्तं न छत्तिवण्ण-वणं । नव-छत्तवण्ण-परिमल - मए गए जस्स संभरिउं ||३६|| अमयमइओ व्व अहवा अमयमयाओ वि समहिओ जस्स । हर - हीर - पिआहि वि जस - गीअ - झुणी सुव्वए वीसुं ॥३७॥ असुडिअ - पडिहा-पसरस्स अग्गओ जस्स दप्प - कण्डूलं । खण्डिअ - नाण - प्पsिहं बुहं- चुडं गउअ-चण्डं व ॥३८॥ असि - पुदुमो धणु- पुढमो छुरिया - पदुमो अ सेल - पढमो य । सव्वण्णुव्व अहिण्णू जो सयल - कला - कलावस्स ||३९|| उर-सेज्जाइ वि हरिणो सुन्दर - घरम्मि सइ सिरी अथिरा । जस्स गुण-वेल्लि तरुणो थिरासि भू- वल्लि - पेरन्ते ||४०|| जस्स य दिस - पज्जन्ते अहरिअ - जोहोक्करो जसोक्रो । अच्छेर - निरीहाण वि अच्छरिअं किं व न करेइ ॥४१॥ जो आस बम्भर - गहण गुरू पइ - विओअ - विहुरस्स । रण्णन्तग्गय-रिउ-अन्तेउर - पोम्मच्छि - लोअस्स ॥४२॥ पय-पउम-नमोक्कारे परोप्परामद्द-तुट्ट-हारेहिं । जस्स सहाइ निवेहिं ओप्पिअमिव मुत्तिआहरणं ॥४३॥ जत्थप्पिअ-भू-भारो सुवइ फणी तत्थ सोवइ हरी वि । जोन्नत्थ - दिन्न - भारो न उणाइ सयालुओ न उणा ॥४४॥ जइ सक्को न उण नरो न उणो नारायणो वि सारिच्छो । जस्स पुणाइ पुणाइवि भुवणाभय - दाण- ललिअस्स ॥४५॥ रणे अरण-साणाउलम्मि लाऊ -लया-हरे रुन्नं । जस्सारि-वहूहि तहा अलाउ - कुल्ला जह कयाओ ॥४६॥ उक्खय-संठविअ निवेण जेण वच्छत्थलाओ हरिणो वि । उक्खाया भुय - दण्डे निअम्मि संठाविया लच्छी ॥४७॥ अह कइया वि दिवा - मुह - पत्थावे पत्थवोचिअं तस्स । अणुरागागय-मरहट्ठमाइ-सूएहिँ इअं पढिअं ॥४८॥ हय-मंसल-तम-पसरो सइ वामो पंसुलाण पच्चूसो । सामय-वय-दिन्नग्घो तं व पयट्टो सया पुन्नो ॥४९॥ ९८
SR No.521037
Book TitleNandanvan Kalpataru 2016 11 SrNo 37
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtitrai
PublisherJain Granth Prakashan Samiti
Publication Year2016
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Nandanvan Kalpataru, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy