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प्राकृतद्वयाश्रयमहाकाव्यम्
विज्जु-चलं महुर-गिरो. दितो लच्छि जणो छुहत्ताण । भिसओ खु जहा सरओ दिसाण पाउस - किलंताण ॥९॥ जत्थच्छरस-मण-हरो वहूहि रमिरो वि अच्छर - समाहिं । दीहाऊ वि अदीहाउस - माणी सइ विवेइ - जणो ॥१०॥ कुसुम-धणू धणुह-धरो कउहा - मुह - मंडणम्मि चंदंमि । रज्जं तमेग-छत्तं असंकमुवभुंजए जत्थ ॥११॥
रोमंच - कंटइल्लो संझाए वंक - जंपण - छइल्लो । जत्थ मणंसिल-तिलओ विलसइ अहिसारिआ - लोओ ॥१२॥ जत्थ भवणाण अवरिं देवं नागेहि विम्हया दिट्ठो । रमइ मणोसिल-गोरो मणसिल- लित्तो मयच्छ - जणो ॥ १३ ॥ पव्वेसु अपव्वेसुं जत्थ मुणीणं कमेण अकमेणं । काऊणं पडिवत्तिं हरिसं क़ाऊण देइ जणो || १४ ||
- गुणो तीस - गुणो कलि- कालो नूण जत्थ कय- - जुगओ । नूणं अणभुज्जंते लोए मासं स-मंसं व ॥१५॥
कलंकं व रयणी - रमणं कुणन्ति अकलङ्कं । हु सङ्खधर-संख-भङ्गोज्जलाओ भवणंसु-भंगीओ ॥१६॥ लङ्घिज्जइ नाऽलंघं वञ्चिज्जइ न हु अवंचणिज्जं च । वञ्छिज्जइ न वि जस्सि अवंछणिज्जं च केणाऽवि ॥ १७ ॥ वंजिअ - सत्ती सत्ती- अणजिओ सत्ति-वंझ - जण - वञ्झो । लुंटाय - लुण्टणो संठे सण्ठो जत्थ निव - लोओ ॥१८॥ उद्दंड - बाहु - दण्डा जस्सि कुंढासहा समयकुण्ढा कंतंगा कन्त-गुणा नय-पंथे पन्थि पुरिसा ॥ १९॥ चंदुजाण वं चन्दो फिअ - बंधूण बन्धवो जस्सि । अणुकंप-कम्पिअ-मणो विहवि - जणो वम्फर धम्मं ॥२०॥ लंबत - लुम्बि - रंभारम्भिय - तोरण-निरुद्ध-संरंभो । सरए वि पाउसम्म व न जत्थ दीसइ फुडो तरणी ॥ २१ ॥
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