SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ||श्रीहितोपदेशद्वात्रिंशिका Sale (प्राकृतविभागः) आ० विजयपद्मसूरिः ॥ आर्याच्छन्दः ॥ पणमिय थंभणपासं, पासट्टियपासजक्खकयसेवं ॥ गुरुनेमिपायपउमं, हिओवएसं भणेमि मुया ॥१॥ कोऽहं किं मे किच्चं, किं सेसं केरिसा पवित्ती मे ॥ वटुंति के वियारा, केरिसवयणाइ भासेमि ॥२॥ संसारनासगाई, काई सेवेमि कारणाइं हं ॥ अप्पा आयसहावे, वट्टइ किं प्रसहावे वा ॥३॥ जीव ! तए संपत्तो, मणुयभवो दुल्लहो सुरेहिं पि ॥ जं पप्प चेव मोक्खो, लब्भइ पुण्णेहि पुण्णेहिं ॥४॥ तं कुज्जा न पमायं, पमायसंगा विसिट्टगुणहाणी ॥ चउदसपुची वि गया, क्यभूरिभवा निगोयम्मि ॥५॥ मणपज्जवनाणाई, तप्परिहारा लहंति गुणिमणुया ॥ तम्हप्पमत्तभावो, विहरिज्जा काउमप्पहियं ॥६॥ विसयकसाया हेऊ, दुग्गड़गमणम्मि संति तोसहरा ॥ इह पत्तगुणविणासा, अवजसघायाइदुक्खदया ॥७॥ विसयवियारुच्चारा, चउत्थनियम्मि रावणो तिव्वं ॥ दुक्खं पत्तो एवं, अणेगजीवा दुही जाया ॥ रुवे मूढपयंगो, हत्थी फरिसे रसे तहा मच्छो ॥ भमरो गंधे सद्दे, लुद्धो मरणं मिओ पत्तो Jain Education International ७५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.521015
Book TitleNandanvan Kalpataru 2005 00 SrNo 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtitrai
PublisherJain Granth Prakashan Samiti
Publication Year2005
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Nandanvan Kalpataru, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy