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तं चिंतंबुहिपोयं संणासियविग्घभीइगयसोय । परिणंदियभविलोयं जयउ सुकयबोहिपज्जोयं ॥ गाहा ॥ ३७ ॥ संघगि एसो सया कल्लाणतई करेउ सुयपाढो । रिद्धी सिद्धी बुड्डी गणणा सवणाउ भत्तीए ॥ गाहा ॥ ३८ ॥ सत्तनिहिणंदचंदग(१९९७) - वरिसे - माहे सियणवमीदिवसे । गुरुनेमिसूरिसीसो सूरी पोम्मो पणेही हं ॥ गाहा ॥ ३९ ॥ सिरियनयररइए थवणे तस्संघभव्यविण्णवणा । भव्वा ! भावा सययं पढह सुणेह प्पमोयभरा || गाहा ॥ ४० ॥
॥ अंतिममंगलम् ॥
जिणसासणणिस्संदो कप्पल अब्भहि अपुण्णमाहप्पो । सिरिसिद्धचक्कमंतो होउ सया तित्थभद्दयरो ॥४१॥ आर्यावृत्तम् ॥
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