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________________ 82 धर्म चन्द जैन SAMBODHI प्रो. पाहिकृत दुःख-वर्गीकरणः प्रो. विश्वम्भर१२ पाहि ने वैशेषिक पदार्थ-व्यवस्था का पद्धतिमूलक विमर्श करते हुए दुःख का जो वर्गीकरण किया है । वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । उन्होंने दुःख के मूलतः दो प्रकार स्वीकार किये हैं- १. लोकोत्तर दुःख २. लौकिक अथवा साधारण दुःख । प्रो. पाहि के अनुसार लोकोत्तर दुःख एक ऐसी वेदना है, जो मानवीय मूल्यों के सर्जन में कारण होने से मंगलकारी है। लौकिक अथवा साधारण दुःख या तो मानवकृत होता है या फिर प्रकृतिकृत । मानवकृत दुःख पुनः व्यक्तिकृत एवं संस्थाकृत दुःखों में वर्गीकृत किया गया है। व्यक्तिविशेष के द्वारा उत्पन्न दुःख व्यक्तिकृत होता है, जो पुनः दो प्रकार का निरूपित है - १. अर्जित दुःख – यह भोक्ता के स्वकृत कर्म से उत्पन्न होता है । २. अनर्जित दुःख - यह अन्य व्यक्ति के द्वारा उत्पन्न दुःख है । संस्थाकृत दुःख से अभिप्राय उस दुःख से है जो राज्य, समाज आदि संस्थागत व्यवस्थाओं के कारण उत्पन्न होता है । लौकिक दुःख के द्वितीय प्रकार प्रकृतिकृत दुःख को भी पुनः दो प्रकारों में विभक्त किया गया है । एक वह दुःख जो उपलब्ध तकनीकी या साधनों द्वारा नियन्त्रित किया जा सकता है, यथा- बाढ, अकाल आदि से उत्पन्न दुःख । जो नियन्त्रित न किया जा सके वह प्रकृतिकृत अन्य दुःख है, यथा भूकम्प, तूफान आदि से होने वाला विनाश । संक्षेप में इस दुःख के वर्गीकरण को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है दुःख लौकिक या साधारण दुःख लोकोत्तर दुःख (मानवीय मूल्यों की सृष्टि के आधार रूपी पवित्र एवं मंगलकारी दुःख) मानवकृत प्रकृतिकृत व्यक्ति कृत संस्थाकृत (व्यक्ति विशेष कृत (राज्य, समाज आदि संस्थागत कर्म के फलस्वरूप उत्पन्न) व्यवस्थाओं के कारण उत्पन्न) अजित दुःख अनर्जित दुःख (भोक्ता से स्वकृत कर्म से उत्पन्न) (परकृत कर्म से उत्पन्न दुःख) अन्य नियन्त्रण या निराकरणयोग्य (उपलब्ध तकनीक द्वारा)
SR No.520791
Book TitleSambodhi 2018 Vol 41
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages256
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size20 MB
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