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Vol. XLI, 2018
लोक कला के नये मुहावरे गढ़ते : यामिनी राय के चित्र
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कला की बहुत बड़ी ताकत है। शृंगार करती स्त्री हो या बैठी हुई या बच्चे को संभालती हुई या नृत्य मुद्रा में कोई गोपिनी हो - यामिनी राय की रेखाएँ प्रेक्षक को सब तरह से बांध लेती हैं । पशुओं का संसार भी अत्यंत समृद्ध है । जाहिर है कि बंगाल के कलाकार के लिए बिल्ली एक केन्द्रीय आकर्षण है। हाथी भी यामिनी राय को खूब आकर्षित करता था । घोड़े लोक खिलौनों की तरह सजे-धजे या उड़ रहे होते थे । चाहे पेंटिंग हो या रेखांकन – यामिनी राय ने माँ-बच्चे के अनगिनत रूप चित्रित किए हैं । कुछ रेखांकनों में अलग तरह के और अत्याधुनिक संयोजन पहचाने जा सकते हैं । कालीघाट चित्रों की मोटी रेखाओं का भी उन्होंने बैठी हुई स्त्री की विभिन्न मुद्रओं में बड़ा सुंदर इस्तेमाल किया ।१० आपके चित्रों में दूर-दराज के गाँवों के पटचित्रों व लोक रूपों का विषय और अभिव्यक्ति के रूप में सहजता ही विशेष रूप से दृष्टव्य होती है। 'ढोकरा शिल्प' और गाँव की 'गुड़िया कला' उन्हें प्राय प्रेरणा देती रही, फर्श पर सजे 'अल्पना' और कथरी-गुदड़ियों की कशीदाकारी की 'कांथा कला' भी आपके चित्रों के अलंकरण की प्रेरणा बनी । अनेक रूपों में उन्होंने अपने चित्रों को शाश्वत गुणवत्ता प्रदान की। यामिनी राय की कला का बांकुरा क्षेत्र की जीवन्त लोक कला से सीधा सम्बन्ध था ।
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यामिनी राय : गोपिनी यामिनी राय इस बात के पक्ष में थे कि कलाकृतियाँ अधिकाधिक घरों में जगह पाएँ । इसीलिए वे स्वयं को पूरे जोशो-खरोश से पटुआ कहते थे । अपने स्वनिर्धारित आदर्श कलात्मक मूल्य उन्हें दृढ़ता प्रदान करते थे । सम्भवतः इन्हीं मूल्यों के कारण उनमें दार्शनिक की-सी तटस्थता दिखाई देती थी जिसके कारण उनकी प्रदर्शनियों की संख्या भी बहुत सीमित रही । अपने जीवन काल में तो केवल दो ही प्रदर्शनिया हो पाई (लन्दन १९४६ और न्यूयॉर्क १९५३) । दिल्ली की आधुनिक कला की राष्ट्रीय वीथिका तथा अन्य कई व्यक्तिगत एवं सावर्जनिक भारतीय एवं विदेशी संग्रहालयों में उनकी कृतियाँ पाई जाती