________________
166
राजेन्द्र प्रसाद
SAMBODHI
यामिनी राय को विषय-वस्तु चुनने में कोई कठिनाई नहीं थी। उनके विषय इर्द-गिर्द के लोगों से लिये गये हैं, खास तौर पर ब्राउल, बाओरी, सन्थाल और मल्ल जैसे ग्रामीण जन बहुलता से उनके चित्रों में प्रकट होते हैं । पौराणिक पात्र भी आम हैं, यथा – कृष्ण, बलराम, शिव, राम और गोपियां इत्यादि । इसके अलावा पशु-जगत से भी बिल्लियों, गायों, घोड़ों और चिड़ियों के बिम्ब भी अकसर नजर आते हैं । लेकिन इन सब में से भी यामिनी राय ने 'माँ और बच्चा' और सन्थाल स्त्रियों समेत औरतों को अधिक संख्या में अपने चित्रों का विषय बनाने की ओर झुकाव दर्शाया है। प्रसंगवश, कुछ समीक्षकों के अनुसार सन्थाल थीम ही आगे रूपान्तरित होकर यामिनी राय के उन चित्रों में विस्तार पाती है जो उन्होंने ईसाई विषयों पर बनाये । उनके चित्रों में नारी रूप प्रधान थे जिनमें माँ, युवती, पुजारिन आदि रूपों ने स्थान पाया । ये पारम्पारिक भारतीय नारी के रूप थे तथा जनस्मृति में इन चित्रों के ये रूपाकार आज प्रतीक बन चुके हैं। उनके चित्रों में रंग का प्रयोग हमेशा इस तरह सपाट रहा कि धरातल की द्वि-आयामी प्रकृति में आकार त्रि-आयामी भ्रम न हीं देते ।
यामिनी राय : झिंगा और बिल्ली त्रि-आयामी आभास के बिना भी ये रूपाकार अक्सर विराट, बलिष्ठ तथा आयतन बोध लिए हुए है । लघुत्तम रूपाकारों में भी बृहदाकृत होने का एहसास स्पष्ट होता है । ऐसा रूपाकारों में निहित प्रसारित ऊर्जा के कारण नहीं बल्कि रेखा में गठन की विशिष्टता से संभव हुआ । रेखा की स्वच्छ व शक्तिशाली भाषा यामिनी राय की कला का मूल आधार थी। उनके चित्रों में रेखा असाधारण रूप से बलिष्ठ, आलंकारित, स्वतः स्फूति, मितव्ययी और नितांत सरल होती थी। एक ही रेखा की बहुमुखी गति में कई विवरण व भाव-भंगिमाएँ सीधे आंकी जान पड़ती है ।
यामिनी राय की रेखा कालीघट के पट चित्रों की त्वरित तूलिका संचालन से प्रभावित थी जिसकी बानगी उनके चित्रों में दृष्टित है। उनके नारी-देह अंकन करने वाले चित्र, रेखाओं की वक्रतापूर्ण अभिव्यक्ति और लयात्मक सौन्दर्य के लिए विशेष रूप से विख्यात हुए । दरअसल यामिनी राय के रेखांकन उनकी