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________________ 142 हेमवती नन्दन शर्मा SAMBODHI परीक्ष्य पाण्डित्यमृपेम॑षापराः परीक्षकावेदनिधे शातुरा । समूचि रे ते बुधबालशास्त्रिणं मृगा यथा तस्य पुरोहरेर्वयम ॥१३ झूठे पण्डितों ने ऋषि के पाण्डित्य की परीक्षा की । वे अति आतुर होकर बालशास्त्री से बोले उस वेदनिधिसिंह के सामने तो हम मृग हो रहे हैं । यहाँ पर पाण्डित्य परीक्षा के अन्तर्गत ऋषि दयानन्द को सिंह की उपमा एवं झूठे पंडितों को मृग की उपमा दी गई है। रूपक अलंकार - रूपक अलंकार का लक्षण स्पष्ट करते हुये आचार्य मम्मट ने लिखा है कि “तद्रूपकमभेदो य उपमानोपमेययो ।१४ अर्थात् उपमान और उपमेय का जो अभेद वर्णन है, वही रूपक अलंकार है । प्रस्तुत महाकाव्य से रूपक अलंकार का एक उदाहरण दृष्टव्य है - मदांदिषड्वर्गपलायनंश्रुत पराजितंमत्तगजेन्द्रवद्रलम् । पद प्रणष्टं च विरोधिनां शिशौ __ चकासति प्रेङ्खति मूल शङ्करे ॥१५ यहाँ पर "गजेन्द्ररूपी विरोधी एवं सिंह रूपी मूल शंकर के कारण रूपक अलंकार है । इसके अतिरिक्त कवि आचार्य रमाकान्त उपाध्याय ने श्रीदयानन्दचरितमहाकाव्यम् में अतिशयोक्ति, काव्यलिङ्ग अर्थान्तरन्यास आदि अलंकारों का प्रयोग भी अपने काव्य में किया है। छन्द योजना : कवि आचार्य रमाकान्त उपाध्याय ने श्रीदयानन्दचरितमहाकाव्यम् में अनेक छन्दों का प्रयोग किया है जिनमें शार्दूलविक्रीडित, शिखरिणी, वंशस्थ, मन्दाकान्ता, उपेन्द्रवज्रा, द्रुतविलम्बित भुजंग-प्रयात, अनुष्टुप आदि है। सूक्ति -योजना : महाकाव्य की विषय-योजना लोक-व्यवहार से सम्बन्धित होने के कारण सूक्तियों का बाहुल्य काव्य में प्राप्त होना स्वभाविक एवं काव्यशास्त्रीय दृष्टि से पूर्णतः उचित ही है। श्रीदयानन्दचरितमहाकाव्यम् में अनेक विषयों से सम्बद्ध सूक्तियों का प्रयोग कवि ने किया है, उनमें से कुछ उदाहरण यहाँ दृष्टव्य है परार्थहन्तुर्विकृतिर्जगत्याम् ।१६
SR No.520791
Book TitleSambodhi 2018 Vol 41
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages256
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size20 MB
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