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Vol. XLI, 2018
श्रीदयानन्दचरितममहाकाव्यम् : एक समीक्षा
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तदामुदापूज्यगुरुः सगद्गद
स्वमङ्कमारोप्यजगादतं पुनः । गतिं त्वदीयां विमलां मति शुभां
नतिं च सम्प्रेक्ष्य गतोऽस्मिसन्मुदम् ॥ सहर्ष गद्गद् हो पूज्य गुरु ने उसे गोद में बैठाकर कहा – तुम्हारी गति और विमल शुभमति ‘एवं नति (नम्रता) को देखकर मैं तो अतुल हर्षित हो रहा हूँ।
माधुर्य गुण :
दण्डी के मत से रसमपता को माधुर्य कहते हैं, उन्होंने माधुर्य का तात्पर्य सरलता, शिष्टता तथा सुसंस्कृतता से लिया है :
मधुरं रसवद् वाचि वस्तुन्ययिरसः स्थितः ।
येन माद्यंति धीमंतो मधुनेव मुधव्रता । प्रस्तुत महाकाव्य में से माधुर्य गुण का एक उदाहरण प्रस्तुत है -
दिशां प्रसादे पवनः सुखववौ
गवां प्रसादे जनमण्डलं बभौ । बभुस्तदानी निजराष्ट्रभास्वरा
मुदं दधानाश्च शुभाशिषो ददुः ।१० अलंकार-विमर्श
अलंकार दो शब्दों के मेल से बना है - अलम और कार । जिसका अर्थ होता है - शोभाकारक पदार्थ । “अलंक्रियतेऽनेन इत्यलंकारः" अर्थात् जो अलंकृत करे अथवा जिसके द्वारा अलंकृत किया जाय उसे अलंकार कहते हैं ।
आचार्य दण्डी ने भी काव्य के शोभावर्द्धक धर्म के रूप में अलंकारों को मान्यता प्रदान की हैं
काव्य-शोभा-करान् धर्मानलंकारान् प्रचक्षते ९ उपमा अलंकार :
आचार्य मम्मट ने उपमा अलंकार का लक्षण इस प्रकार किया है कि उपमान और उपमेय के भेद होने पर भी उन दोनों का एक समान धर्म से सम्बन्ध उपमा कहलाता है - साधर्म्यमुपमा भेदे१२
आचार्य रमाकान्त उपाध्याय द्वारा रचित श्रीदयानन्दचरितमहाकाव्यम् में से उपमा अलंकार का एक उदाहरण दृष्टव्य है -