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________________ Vol. XLI, 2018 श्रीदयानन्दचरितममहाकाव्यम् : एक समीक्षा 143 दूसरे के हित को नष्ट करने वाले का संसार में तिरस्कार ही होता है । वृषा मियन्तेन च काक-शापैः ।१७ कौओं के शाप से बैल (बलशाली) नहीं मरा करते । निरस्तपादपे देश एरण्डोऽपि द्रुमायते ।१८ जिस देश में वृक्ष नहीं होते, वहाँ ‘एरण्ड' (रेडी) को ही पेड़ समझा जाता है । दारिद्र्य दोषो गुणराशिनाशी ।१९ दारिद्र्य समस्त गुणों पर पानी फेर देता है । श्रीदयानन्दचरितमहाकाव्यम् की भाषा शैली : कवि की भाषा भी स्वयं के व्यक्तित्व के अनुरूप ही होती है। प्रस्तुत काव्य में परिष्कृत, परिशुद्ध संस्कृत भाषा का प्रयोग हुआ है । भावों के विन्यास, कोमल, कल्पना, चारुता, सूक्ति-साधुना, प्रकृतिचित्रण आदि प्रस्तुत काव्य में सहजतया विद्यमान है । इस प्रकार प्रस्तुत काव्य की भाषा-शैली अत्यन्त सरल, सहज एवं भावगम्य है । इस प्रकार कवि आचार्य रमाकान्त उपाध्याय द्वारा रचित श्रीदयानन्दचरितमहाकाव्यम् की साहित्यिक समीक्षा के दोनों पक्षों (भाव एवं कला पक्ष) के द्वारा समीक्षा करने पर ज्ञात होता है कि इस काव्य में दोनों ही पक्षों में समाहित तत्त्वों का प्रयोग कवि ने यथा स्थान किया है । सन्दर्भ : १. वाचस्पत्यम् - श्रीतारानाथ वाचस्पति, पृ. ४७९४ २. काव्यालंकारसार संग्रह-उद्भट ४/४ ३. दशरूपक - ४/८१ श्रीदयानन्दचरितमहाकाव्यम् ५/४४ श्रीदयानन्दचरितमहाकाव्यम् २/५४ ६. श्रीदयानन्दचरितमहाकाव्यम् ४/९९ ७. काव्यालंकारसूत्रवृत्ति-वामन ३.१.१ श्रीदयानन्दचरितमहाकाव्यम् ३/४१ ९. काव्यादर्श-दण्डी १/५१ १०. श्रीदयानन्दचरितमहाकाव्यम् १/८ & 32
SR No.520791
Book TitleSambodhi 2018 Vol 41
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages256
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size20 MB
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