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________________ 139 Vol. XLI, 2018 श्रीदयानन्दचरितममहाकाव्यम् : एक समीक्षा प्रदान की थी । शांत रस को मुनि भरत ने अभिनेय मानकर उसका वर्णन नहीं किया । सर्वप्रथम उद्भट ने नौ रसों का वर्णन किया है - श्रृंगारहास्यकरुणरौद्र वीर भयानकः । वीभत्साद्भूतशांताश्चनवनाट्येरसास्मृताः ॥ अर्थात् शृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, विभत्स, अद्भूत और शांत । श्रीदयानन्दचरितमहाकाव्यम् में रस-योजना करुण रस : इष्टनाश एवं अनिष्ट की प्राप्ति से उत्पन्न होने वाला रस करुण रस कहा जाता है। इसका स्थायी भाव शोक है। इसकी उत्पत्ति शोक, क्लेश, विनिपात, इष्टजन-विप्रयोग, विभवनाश, वध आदि विभावों द्वारा होती है। धनञ्जय ने इष्टनाश या अनिष्ट की प्राप्ति से करुण रस की उत्पत्ति मानी है। इष्टनाशादानेष्टप्राप्तौ शोकात्मा करुणो रसः श्रीदयानन्दचरितमहाकाव्यम् में करुण रस का परिपाक स्पष्टः दृष्टिगोचर होता हैं एक उदाहरण दृष्टव्य है, जिसमें अनेक नारियाँ वैधव्य से तप्त हो रही है, वे रो रही है हे दयाशीलों ! उन पर दया करो । जिससे कि उनका वह क्रन्दन देश को न जलाये । अतः शीघ्र ही उनका विवाह करना उचित है । अनेकाश्चवैधव्यदग्धास्त्विदानी __ रुदन्तीतितासां दयार्दा दयध्वम । यथा क्रन्दनं तद्धहेन्नैव देश तथा तद्विवाहं पुनः कारयध्वम् ॥ शान्त रस: तत्त्व-ज्ञान तथा वैराग्य के कारण शांत रस उत्पन्न होता है इसका स्थायी भाव निर्वेद है । शांत रस के आलंबन है - अनित्य रूप संसार का ज्ञान तथा परमार्थ-चिंतन आदि । श्री दयानन्दचरितमहाकाव्यम् के दूसरे सर्ग में तत्त्व-ज्ञान का प्रसंग उपस्थित हुआ है जिसका उदाहरण द्रष्टव्य है - जोवोऽस्ति नित्यः प्रकृतिश्च नित्या नित्योजगत्कारणमीश्वरश्च ।
SR No.520791
Book TitleSambodhi 2018 Vol 41
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages256
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size20 MB
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