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________________ श्रीदयानन्दचरितममहाकाव्यम् : एक समीक्षा हेमवती नन्दन शर्मा "श्री दयानन्दचरित महाकाव्यम्" के रचयिता परम मनीषी विद्वान आचार्य रमाकान्त उपाध्याय है। (आपश्री का जन्म उत्तरप्रदेश के सुल्तानपुर जनपद के झोंआरा ग्राम में सन् १९७२ में हुआ था । इनके पिता का नाम श्री नागेशोपाध्याय जो ज्योतिष शास्त्र के परम ज्ञाता थे इनकी माता का नाम श्रीमती दिलराजी देवी अत्यन्त धार्मिक गृह कार्य में कुशल एवं व्रत, जप, तीर्थादि में निष्ठा रखने वाली थी। ब्राह्मण पुत्र होने के कारण आपको संस्कृत आदि ग्रंथों के अध्ययन की प्रेरणा विरासत से ही प्राप्त हुई। इसी की फलश्रुति है कि आपने 'श्रीदयानन्दचरितमहाकाव्यम्' की रचना कर डाली । श्रीदयानन्दचरितमहाकाव्यम् बीस सर्गों में विभक्त है। इस महाकाव्य के प्रणेता आचार्य रमाकान्त उपाध्याय ने इन बीस सर्गों के अन्तर्गत विद्यातीर्थ महाकवि महर्षि दयानन्द के पावन जन्म का वर्णन, उनके व्याकरण, वेदादि शास्त्रों का अध्ययन श्री दयानन्दजी के द्वारा पशु, पक्षी आदि मांस भक्षण एवं मदिरा पानी की अत्यन्त निंदा के साथ बालविवाह, मूर्तिपूजन आदि कुप्रथाओं का खण्डन, पंडितों से शास्त्र वाद-विवाद, अन्य कुमतों का खण्डन एवं वेदोक्त मंत्रों की प्रमाणिक व्याख्या, हिमालय, हरिद्वार, गंगादि वंदनीय स्थानों का वर्णन किया है। इस प्रकार महाकाव्य के रचयिता आचार्य रमाकान्त उपाध्याय ने समग्र विषय को आत्मसात् करते हुये महर्षि दयानन्द के सम्पूर्ण-चरित्र को उद्घाटित करने का प्रयास किया है जो अपने आप में अद्वितीय है । रस-विमर्श रस शब्द "रस्यतेआस्वाद्यते"१ इस व्युत्पत्ति से निष्पन्न है । जिसका अर्थ है आस्वाद्यमान या जिसका आस्वादन किया जा सके । काव्यशास्त्र में रस शब्द का प्रयोग शृंगारादि रसों के अर्थ को व्यक्त करता है । अभिप्राय यह है कि जिसके द्वारा भावों का आस्वादन हो, वह रस है। रस-संख्या ___ यद्यपि रसों की संख्या को लेकर अत्यधिक विवाद है। लेकिन शास्त्रीय परम्परा, सर्व सम्मति से नौ रसों को मान्यता प्रदान की थी । भरत और उनसे पूर्ववर्ती आचार्यों ने आठ रसों की ही मान्यता
SR No.520791
Book TitleSambodhi 2018 Vol 41
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages256
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size20 MB
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