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Vol. XLI, 2018
संस्कृत तथा फारसी के क्रियापदों में साम्य
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फा-अज. ईन रूए ता मर्व लश्कर किशीद. शुद अज. गर्द लश्कर ए जमीं नापदीद । (फिरदौसी) (इस तरह से मर्व तक फौज खींचा कि सेना की गर्द से धरती गायब हो गई।)
यहाँ पर 'खींचने व जोतने' अर्थ में फारसी की दो धातुएँ हैं - 'को' और 'किश्' । जो संस्कृत की । कृष्' (कर्ष) से साम्य रखतीं हैं । स्वरूपगत समानता देखें तो 'कर्का, किश्' दोनों 'कृष्' से सम्बद्ध हैं एक में 'ष्' नहीं है और एक में 'र' (अर्) नहीं है, जो कि देश कालानुसार परिवर्तित हो गया है जब कि उदाहरण से स्पष्ट है कि दोनों ही फा०म० अर्थगत समानता की दृष्टि से 'कृष्' के पूर्ण समीप हैं। क्राम्<>खराम्
क्रामति>खरामद संधा. - । क्रमु पादविक्षेपे८७ फाम- खराम(खरामीदन) उदा० सं० – 'गम्यमानं न तेनासीदगतं कामता पुरः' ।८८ 'स्थितः सर्वोन्नतेनोर्वी क्रान्त्वा मेरुरिवात्मना' ।८९ फा० – आन्दम के मी पूशी कबा म खराम अज बहरे खुदा ।९० (खुदा के लिए, उस समय जब तुम कबा (वस्त्र) पहनी हो इठला कर मत चलो ।)
संस्कृत 'क्राम्' के समानान्तर फारसी मसदर 'खराम' है। जो ध्वनि की दृष्टि से पूर्णतया संस्कृत की इस । क्रम' धातु से साम्य रखती है । केवल 'क्राम' के क् अघोष ध्वनि को फारसी में ख्. संघर्षी ध्वनि हो गई तथा अकार का आगम होकर 'खराम' हुआ । वस्तुतः यह परिवर्तन देशकाल के कारण है । अर्थगत समानता लगभग दोनों में एक ही 'गमन करना' अर्थ के रूप में है । ७. खन्>>कन्
खनति/खनतुकनद संधा- । खनु अवदारणे११
फाम- कन(कन्दन) उदा० सं०- 'खनन्नाखुबिलं सिंहः पाषाणशकलाकुलम्' ।९२ (पाषाणखण्डों से व्याप्त भूमि में स्थित चूहे के बिल को खोदने वाला सिंह ।) फा- चूँ बन्दे रवान बीनी ओ रञ्ज ए तन । बे कानी के गौहर नयाबी मकन। । (फिरदौसी)
फा० म० 'कन्' का स्वरूपतः सं खन्' धातु से साम्य है । फारसी में मात्र सं० 'ख' (खन्) के स्थान पर 'क' हो गया है जबकि 'क्' एवं 'ख्' दोनों ही अघोष ध्वनियाँ हैं । अर्थ की दृष्टि से दोनों भाषाओं की ये धातुएँ 'खोदना' अर्थ को व्यक्त करती हैं । कभी-कभी उपसर्गों के प्रयोग से इनके अर्थों में परिवर्तन आ जाता है ।