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________________ 128 मोहित कुमार मिश्र SAMBODHI प्राप्ति अर्थ में उपर्युक्त धातु Vया/ आप्' और फा०म० 'याफ्त/याब्' में ध्वनिगत एवं अर्थ की दृष्टि से पूर्ण साम्य है। मात्र 'आप' के प् को फा० में सघोष ब् हो गया है। तिङ् प्रत्यय दोनों भाषाओं में पृथक् होने से उनके क्रियापदों के स्वरूप में कुछ अन्तर आ जाता है, परन्तु अर्थगत साम्य वर्तमान रहता है। जो कि 'प्राप्त करना' के रूप में प्रयुक्त है। ३. आ / चम्>>आशम् । आचामति>आशामीद/आशामद संधा-आङ् चमु अदने७९ फा०म०-आशाम (आशामीदन) उदा० सं– 'आकाशवायुर्दिनयौवनोत्थानाचामति स्वेदलवान् मुखे ते' । (वायु तुम्हारे मुख पर दोपहर की गर्मी से उत्पन्न पसीने की बूंदों को पी रहा है/सुखा रहा है।) फा-अज. शबनम आशामीदन तिश्नगी तमाम न मी शवद ।८१ (ओस की बूंद पीने से प्यास नहीं बुझती है।) आ उपसर्गपूर्वक / चम्' धा० से फा० में 'आ+शम्(आश्म्)' का स्वरूपगत साम्य है। इसमें केवल वर्णभेद है- फा० में 'चम्' के च को श् हो गया है जबकि दोनों व्यञ्जन ही तालव्य हैं और ये एकार्थक (समानार्थक) हैं। अर्थगत समानता उदाहरण से स्पष्ट ही है। ४. । कष्/कुथ्>> कुश् कषति/ते, कुन्थति>कुश्तन्द/कुशद संधा-कष हिंसायाम्८२, । कुथि हिंसायाम्३ । फा०म०-कुश (कुश्तन) उदा० सं०- 'कषन्निवालसत्कषपाषाणानि नभस्तले' ।।४ फा- बसी नामदाराने मा रा बिकश्त । चूँ यारान नमान्दन्द बिनमूद पुश्त । (फिरदौसी) (हमारे बहुत से सम्बन्धियों को मार डाला जब सम्बन्धी न रहे तो हिम्मत पस्त हो गई।) उपर्युक्त । कष् धा० से साम्य रखने वाली फा० 'कुश्' है जो अर्थगत रूप में सं1 कुन्थ्' से 'वध करना' अर्थ से अत्यधिक सामीप्य है। फा० में मूर्धन्य '' नहीं होने से तालव्य 'श्' का प्रयोग हुआ है और उकार का आगम होकर 'कुश्' बन गया है। अथवा स्वरूपतः 'कुन्थ्' का 'थ्' फा० 'कुश्' के 'श्' में परिवर्तित हो गया होगा। । कर्ष>>कार् किश् कर्षति>किशद/कारद संधा- कृष विलेखने फाम- कार, किश (कशीदन, किश्तन) उदा. सं– 'शरीरात् मे मनः प्रसभं कर्षति' ।८६ (शरीर से मेरा मन बलात् खींच रही है ।)
SR No.520791
Book TitleSambodhi 2018 Vol 41
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages256
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size20 MB
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