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120 मोहित कुमार मिश्र
SAMBODHI कर सकता है। भाषावैज्ञानिक अब्राहम जैक्सन ने भी कहा है कि कोई भी संस्कृत शब्द केवल कुछ ध्वनिनियमों के प्रयोग से अवेस्ता के पर्यायवाची शब्द के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है तथा यह बात अवेस्ताई श्लोक का वैदिक संस्कृत में अनुवाद करके प्रमाणित कर दिया है - मूल अवेस्ता
वैदिक संस्कृत तम अमवन्तम यजतम
तम् अमवन्तं यजतम् सूरम दामोहु सविश्तम शूरं धामसु सविष्ठम् मिथ्रम यज़ाइ जओथ्राब्यो मित्रं यजे होत्राभ्यः।
फारसी तथा संस्कृत भाषा का भाषीय अन्तः सम्बन्ध अत्यन्त समृद्ध रहा है और दोनों के व्याकरण में पर्याप्त समानता भी है । अवेस्ता और संस्कृत की विभक्तियाँ एक समान हैं, दोनों में ही तीन लिंग, तीन वचन, आठ कारक हैं । कारकों का प्रयोग भी प्राय: वही है, यद्यपि वर्तमान फारसी में दो लिंग
और दो वचनों का ही प्रयोग होता है । क्रियारूपों में तो आश्चर्यजनक समानता है, पुरुष एवं वचन में भी पूर्ण साम्य है । क्रिया के रूप दोनों में समान रीति से बनाये जाते हैं । जो द्रष्टव्य हैंसं० धातु फा मसदर (धातु)
अर्थ कृ -(करोमि) र्क -(कुनम)
करना र्च -(चरामि)
र्च -(चरम) चल् -(चलामि) चल् -(चलम) पच् –(पचामि) पज्. -(पजम)
पकाना ग्रह -(गृह्णामि) गिरिह –(गीरम)
ग्रहण करना संस्कृत तथा फारसी दोनों ही भाषाओं में संख्या और संख्येय शब्दसाम्य प्राप्त होता है। जैसे संस्कृतएकः, द्वौ, त्रयः, चत्वारः, पञ्च, षट् आदि । अवेस्ता- फारसी- येक, द्वा, त्रि(से), चहार, पन्ज, शश आदि।
__ अवेस्ता में ल का सर्वथा अभाव था इसके स्थान पर र् है, परन्तु वर्तमान फारसी में प्राप्त है। अरबी प्रभाव के कारण। वर्तमान फारसी, अवेस्ता से निर्गत उसी प्रकार की प्राकृत कही जा सकती है जिस प्रकार संस्कृत से निकली हुई प्राकृत, पालि आदि भाषाएँ हैं ।१० संस्कृत और अवेस्ता की संरचना तो एक जैसी है, लेकिन वर्तमान फारसी की कुछ धातुएँ (क्रियापद) संस्कृत से निर्गत प्राकृत भाषा के अति निकट हैं । जैसे- 'मसलना या मर्दन' अर्थ में फा० म० 'माल'(मालीदन) का संस्कृत धातु 'मृद्' के स्थान पर प्राकृत 'मल्'११ (मलइ) से, 'मरना' अर्थ की फारसी म. 'मीर्' (मुर्दन) का संस्कृत 'मृ' धातु के स्थान पर प्राकृत 'मर'(मरइ) से अत्यधिक साम्य है। इन्हीं बिन्दुओं को ध्यान में रखकर प्रस्तुत शोधपत्र में दोनों भाषाओं के कुछ क्रियापदों (धातुओं) के अध्ययन को रखा गया है ।
चरना
चलना