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________________ Vol. XLI, 2018 संस्कृत तथा फारसी के क्रियापदों में साम्य 119 भाँति इस देश के गौरवभूत संस्कृत भाषा को सीखकर इस देश की संस्कृति को जाना तथा यहाँ पर शासन किया । संस्कृत तथा फारसी इसीप्रकार की भाषाएं हैं जिनका प्राचीन काल से ही ? ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं भाषिक सम्बन्ध रहा है। भाषा वैज्ञानिक भी इनकी उत्पत्ति-सम्बन्ध को ध्यान में रखते हुए इन्हें सहोदर भाषा मानते हैं तथा भाषाविज्ञान के अध्ययन में भारोपीय-परिवार की भारत-ईरानी नाम की एक पृथक् शाखा के रूप में रखते हैं। भारत-ईरानी भाषा परिवार में भारोपीय परिवार का प्राचीनतम साहित्य ऋग्वेद और अवेस्ता में सुरक्षित है। माना जाता है कि भारत के अधिकांश भाग में बोली जाने वाली भाषा के विकसित रूप का सम्बन्ध किसी एक मूल भाषा से है जिसका प्रचार-प्रसार लगभग ३००० वर्ष पूर्व उत्तर-पश्चिम के लोगों ने किया । भाषा-विज्ञान के अध्ययन के लिए इस परिवार से प्रभूत सामग्री प्राप्त हुई विशेषतः संस्कृत से । व्हिटनी ने भी अपने अध्ययन में कहा है - “As historical fact, the scientific study of human speech is founded upon the comparative Philology of the Indo-European Languages and this acknowledges the Sanskrit as it is most valuable means and aid.” Whiteny, Language and its Study. भाषा-वैज्ञानिक इस परिवार को मुख्यतः दो उपवर्गों में रखते हैं - १. भारतीय आर्य और २. ईरानी । टी० बरो' के अनुसार भारतीय शाखा को ईरानी से अलग करने के लिए यह 'भारतीय आर्य' (Indo-Aryan) शब्द गढ़ लिया गया और भाषा एवं विभाषाओं के अर्थ में यह अब तक प्रयुज्यमान है। चाहे जो भी रहा हो परंतु यूरोपीय उपवर्गों के अलग हो जाने के उपरांत भारत-ईरानी आर्य भाषाभाषी दो दलों में बँट गये, एक ईरान का निवासी हुआ तो दूसरा भारत का। धीरे-धीरे इन दलों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं में प्रादेशिक विभिन्नता उत्पन्न हुई होगी, जिससे इस प्रकार की भारतीय और ईरानी दो अलग शाखाएँ बनीं । भारत-ईरानी भाषाओं में परस्पर साम्य ___ भारोपीय परिवार में अनेक शाखाओं में भारत-ईरानी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन दोनों ही वर्गों में संस्कृत तथा फारसी का अत्यन्त नैकट्य रहा है क्योंकि दोनों ही भाषाओं की संस्कृति का उद्गमस्थल एक ही रहा है और चिरकाल तक ये दोनों संस्कृतियाँ एक साथ रहीं मानी जाती हैं । किन्हीं दो भाषाओं की समानता को उसके भाषिक परिप्रेक्ष्य में अत्यधिक औचित्यपूर्ण ढंग से ज्ञात किया जा सकता है । यदि दोनों की प्राचीनता देखें तो प्राचीन ईरानी भाषा अवेस्ता तथा प्राचीनतम ग्रन्थ वेद का सहसम्बन्ध इतना घनिष्ठ है कि भाषाशास्त्री टी० बरोप के कथनानुसार एक के बिना अन्य भाषा का अध्ययन संतोषपूर्वक नहीं किया जा सकता । भाषिक दृष्टि से भी दोनों में अत्यंत न्यून भेदकतिपय विशिष्ट एवं स्पष्टतः नियत ध्वन्यात्मक परिवर्तनों में पाया जाता है, जिन्होंने एक तरफ ईरानी भाषा तथा दूसरी तरफ भारतीय भाषा को प्रभावित किया है। फारसी ग्रन्थ अवेस्ता की भाषा, शब्दावली, रचना, छन्दोयोजना और भावार्थ संस्कृत के वैदिक मन्त्रों से इस तरह साम्य रखते हैं कि दोनों भाषाओं के ध्वनिनियमों को जानने वाला कोई भी भाषाशास्त्री वेद के मन्त्रों को अवेस्ता में और अवेस्ता की गाथाओं को वैदिक मन्त्र के रूप में परिवर्तित
SR No.520791
Book TitleSambodhi 2018 Vol 41
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages256
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size20 MB
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