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वीरसागर जैन
SAMBODHI
अन्त में, जिसप्रकार यहाँ अन्य दर्शनों के ज्ञान की आवश्यकता प्रतिपादित की, उसीप्रकार व्याकरण, भाषा, साहित्य, न्याय आदि अन्य शास्त्रों के ज्ञान की आवश्यकता भी समझ लेनी चाहिए। विशेष रूप से वक्ता को तो सर्व शास्त्रों का ज्ञान होना ही चाहिए, जैसा कि 'प्राप्तसमस्तशास्त्रहृदयः' (आत्मानुशासन), 'सर्वशास्त्रकलाभिज्ञो' (इन्द्रनंदी) आदि वाक्यों द्वारा पूर्वाचार्यों ने भी स्पष्ट कहा है।