________________
Vol. XLI, 2018
ब्रह्मकारणतावाद एवं सृष्टि : एक आलोचना
99
का परिवर्तन अवश्य होता ही है। ब्रह्म का अपनी ही शक्ति से आवृत्त हो जाना भी एक प्रकार का परिवर्तन ही है।
(३) पुनश्च यह भी प्रश्न उठता है कि यह प्रतीति किसको होती है ? जीव तात्त्विक दृष्टि से ब्रह्म से पृथक् सत्ता तो है नहीं, अतः जीव को प्रतीति होने का तात्पर्य है ब्रह्म की ही प्रतीति होना । इससे ब्रह्म की शुद्धता समाप्त हो जाती है । यह कहना पर्याप्त नहीं है कि यह वास्तविक नहीं है । जो वास्तविक नहीं है, वह भी कुछ तो है ही । अद्वैत-वेदान्त व्यावहारिक सत्ता के रूप में जगत् के अस्तित्व को स्वीकार करता है । एक अवास्तविक सत्ता ही सही, जगत् की स्थिति ब्रह्म की एकता पर, अखण्डता पर और शुद्धता पर प्रश्न-चिह्न लगा देती है।
(४) अद्वैत-वेदान्त दर्शन ब्रह्म में जगत् की प्रतीति उत्पन्न करने वाली शक्ति 'माया' को न सत्, न असत्, अपितु इन दोनों से भिन्न अनिर्वचनीय स्वीकार करता है ।३० किन्तु माया को अनिर्वचनीय कहने से समस्या का समाधान नहीं हो जाता तथा यह विवेकसंगत भी नहीं है । वास्तव में इस संसार में ऐसी कोई भी वस्तु या शक्ति नहीं है जो सत्-असत् से भिन्न अनिर्वचनीय हो । कोई भी वस्तु या तो सत् होगी या तो असत् । अतः इससे केवल यही व्यक्त होता है कि शंकराचार्य द्वारा प्रतिष्ठित 'माया' रूपी अवधारणा मनुष्य की बुद्धि से परे है। किसी भी विषय के बारे में सटीक रीति से न जान पाना ही 'अनिर्वचनीयता' को द्योतित करता है ।
(५) अद्वैत-वेदान्त के अनुसार सृष्टि का निमित्त-उपादान कारण ब्रह्म शुद्ध चैतन्य है ।३९ आधुनिक विज्ञान के अनुसार तो जगत् का उपादान कारण उप-परमाणु कण हैं, न कि कोई चैतन्य वस्तु । शंकर ने मकड़ी का उदाहरण देकर जो सिद्ध करने का प्रयास किया है कि वह वास्तव में त्रुटियुक्त है। मकड़ी के शरीर के अन्दर स्थित पदार्थ (खाद्य सामग्री के रूप में मकड़ी द्वारा संग्रहीत कीड़े-मकोड़े आदि का अवशेष) से ही जाले का निर्माण होता है२२, न कि स्वतः मकड़ी बिना किसी कारण के जाला रूपी कार्य का निर्माण कर पायेगी। कार्य सदा अनभिव्यक्त रूप में कारण में अवस्थान करता है। यदि सृष्टि के निमित्त कारण या कर्ता के रूप में ब्रह्म को माना जाता है तब यह शंका आविर्भत होती है कि ब्रह्म का कारण कौन है ? क्योंकि कार्य-कारण सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक कार्य का कोई कारण होता है, तो उस कारण का भी कोई कारण अवश्य होना चाहिये, अन्यथा विवेकसंगत बात प्रकटित नहीं हो सकती। पुनश्च यदि ईश्वर ने किस उपकरण या साधन के माध्यम से जगत् का निर्माण किया? क्या ईश्वर ने जगत् में विद्यमान प्रत्येक अणु-परमाणु, सूर्य-चन्द्र-आकाशगंगाएँ आदि सूक्ष्म-स्थूल पदार्थों का भी निर्माण किया है ? ब्रह्म या ईश्वर साकार है या निराकार ?
(६) यदि ईश्वर निराकार है तो वह बिना किसी भौतिक उपकरण के द्रव्य पर क्रिया कैसे करता है? यदि उसकी इच्छा, संकल्प और विचारों की क्रिया द्रव्य पर अति सूक्ष्म रूप में होती है, तो यह स्पष्ट करना होगा कि इन्द्रियातीत३३ भौतिक और असाधारण पर क्रिया कैसे करता है। इसलिए तर्कसंगत स्पष्टीकरण के अभाव में यह मान लेना गलत होगा कि निराकार ईश्वर इस भौतिक विश्व का रचयिता स्थूल अर्थ में है।