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Vol. XXXVII, 2014 'संस्कृत की वैज्ञानिकता' तथा व्याकरणशास्त्र को पतञ्जलि की देन वाक्यपदीयकार भर्तृहरि के अनुसार 'महाभाष्य' केवल व्याकरणशास्त्र का ही ग्रन्थ न होकर समस्त विद्याओं का आकर है । वे कहते हैं :
कृतेऽथपतञ्जलिना गुरुणा तीर्थदर्शिना ।
सर्वेषां न्यायबीजानां महाभाष्ये निबन्धने ॥ वाक्यपदीय - २/४८२ ज्योर्ज कार्डोना महाशय इस पद्य में प्रयुक्त 'न्यायबीजानाम्' पट को द्वन्द्व समास बताकर शास्त्रीय युक्तियों को 'न्याय' तथा परिभाषाओं को बीजानि बताकर इसका अर्थ 'sources of interpretational principles' करते हैं ।
पतञ्जलि ने समस्त वैदिक प्रयोग जैसे शन्नो देवीरभिष्टये। (अ.सं.१.१.१)१०, इषे त्वोतं त्वा.। (तै.सं.-१-१.१.१), अग्निमीले पुरोहितम् । (ऋ.सं.१-१.१), अग्न आयाहि वीतय. (सा.सं.१-१.१) शब्दों का अनुशासन किया है। साथ में लोक(संसार) में प्रसिद्ध साधु शब्दर जैसे गौः । अश्वः । पुरुषः । हस्ती। शकुनिः । मृगः । आदि का अनुशासन किया है ।
___ यहाँ हम देख सकते हैं कि भाष्यारम्भ में ही 'अनुबन्ध-चतुष्टय' में से प्रथम अनुबन्ध पाणिनीय व्याकरण के प्रतिपाद्य विषय का निरूपण किया गया है ।
इसके बाद में 'व्याकरण के-शब्दानुशासन के कौन से प्रयोजन है ?' ऐसा प्रश्न उपस्थित करके, उसका उत्तर दिया जाता है : रक्षा-ऊह-आगम-लघु-असंदेहाः प्रयोजनम् ।१२ ये पाँच प्रयोजन मिलके व्याकरणाध्ययन का एक मुख्य प्रयोजन बनता है । इसके बाद भाष्यकार ने दूसरे भी १३ गौण प्रयोजनों की सोदाहरण चर्चा की है।
'महाभाष्य' की रोचकता अपनी शैली के कारण है, जिसमें हमें तत्कालीन विवाद की पद्धति का जीवित चित्र प्राप्त होता है। एक प्रश्न उठाया जाता है; एक आचार्य-देशीय, बिलकुल अयोग्यता से नहीं परन्तु पर्याप्त रूप से सन्तोषजनक रीति से भी नहीं, उसका उत्तर देता है, और एक आचार्य प्रकृत विषय का समाधान करता है। इसलिए शैली सजीव, सरल और ओजस्वी है । व्याकरण शास्त्र के नवीन आयाम रूप महाभाष्य की विशिष्ट शैली भर्तृहरि, कैयट आदि वैयाकरणों के लिए मार्गदर्शक बन गई । संस्कृत व्याकरणशास्त्र को पतञ्जलि का यह अमूल्य प्रदान है। बकरी और कृपाण (अजाकृपाणीय) तथा कौआ और ताड़-फल (काकतालीय) की जैसी लोलोकित-संबन्धी कहानियों का, साँप और नेवले की तथा कौआ और उल्लु की आनुवंशिक शत्रुता का प्रासंगिक उल्लेख ३ भी 'महाभाष्य' में पाया जाता है । दैनिक जीवन की बातों के उल्लेख ग्रन्थ में आते हैं और उनसे शास्त्रीय विवादों में सजीवता के साथसाथ पतञ्जलि के काल में चिन्तन और जीवन की अवस्थाओं के सम्बन्ध में मूलयवान् संकेत भी हमें प्राप्त हो जाते हैं। 'महाभाष्य' की रचना के पश्चात् पाणिनि व्याकरण के समस्त रहस्य स्पष्ट हो गए और उसी का पठन-पाठन होने लगा । इसमें 'अष्टाध्यायी' के चौदह प्रत्याहार सूत्रों को मिलाकर ३९९५ सूत्र विद्यमान हैं । किन्तु १२२८ सूत्रों पर ही भाष्य लिखा गया है, तथा शेष सूत्रों को उसी रूप में ग्रहण कर