SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 82 योगिनी हिमांशु व्यास SAMBODHI का सामान्य ज्ञान, इसके बोलने तथा सुनने वाले सभी मनुष्यों को हो जाता है। उसीके द्वारा मानव परस्पर भावों एवं विचारों का आदान-प्रदान करते हैं । यही भाषा का सामान्य ज्ञान है । इसके साथ ही, संस्कृत भाषा कब बनी? कैसे बनी? इस भाषा का आदिम स्वरूप क्या था? उसमें कब-कब, क्या-क्या परिवर्तन हुए ? उन परिवर्तनों के क्या कारण हैं ? यह सब संस्कृत भाषा का 'विशेष ज्ञान' है । संस्कृत भाषा के सभी अंगो और तत्त्वों पर वैज्ञानिक दृष्टि से विचार, सूक्ष्म निरीक्षण और विश्लेषण होने से संस्कृत भाषा की वैज्ञानिकता सिद्ध होती है। संस्कृत भाषा के व्याकरण की अपनी अलग विधाएँ और चिन्तन के अपने स्वतन्त्र ध्येय हैं। इतने महान ध्येय और महती विधाएँ संसार के किसी भी भाषा के व्याकरण में देखने को नहीं मिलती हैं। ___ व्याकरणशास्त्र के इतिहास में नई उपलब्धियों के स्रष्टा एवं नये उपादानों के जन्मदाता पतञ्जलि एक ऐसे बहुशः प्रतिभासंपन्न वैयाकरण हुए, जिनके कारण ब्रह्मा से लेकर पाणिनि तक की अति दीर्घ व्याकरण-परंपरा अनेक विचारवीथियों में फैलकर अपनी चरमोन्नत अवस्था में पहुँची । पाणिनि और पतञ्जलि के बीच अनेक वैयाकरण आये और कात्यायन को छोड़कर कर्तव्य-निर्वाह का साधारण दायित्व पूरा करके चलते बने, किन्तु पाणिनि की महान् थाती को, उनकी छोड़ी हुई उतनी भारी विरासत को पूरी सफलता के साथ आगे बढाने का दुष्कर कार्य अकेले पतञ्जलि ने ही किया । वे एक महान् विचारक मनस्वी थे। व्याकरण के क्षेत्र में नये युग का निर्माण कर अपनी असामान्य प्रतिभा की छाप आगे की पीढ़ियों के लिए छोड गये । उनको पाणिनीय व्याकरण के अद्वितीय व्याख्याता कहा गया है, किन्तु उनकी ऊँची सूझ और उनके मौलिक विचार सर्वत्र ही उनको एक स्वतन्त्र विचारक की कोटि में स्थान देते हैं। वे पाणिनि के कटु आलोचक भी थे, इस प्रकार की निर्भीकता और अवशंवद आचरण पाण्डित्य का ही एक अलंकरण या विशेषण है । पाणिनि के विवेक, व्यक्तित्व और विचारों ने पतञ्जलि को इतना ऊँचा उठाया, इसकी अपेक्षा यह कहना अधिक उपयुक्त है कि पतञ्जलि ने पाणिनि को चमकाया । पतञ्जलि वैयाकरण तो थे ही, इसके अतिरिक्त उतना ही अधिकार उनका सांख्य, योग, न्याय, आयुर्वेद, कोश, रसायन और यहाँ तक कि काव्य आदि विषयों पर भी था। उनके इस सर्वांगीण व्यक्तित्व का उल्लेख तद्विषयक ग्रन्थों में देखने को मिलता है। वैयाकरणों की परम्परा में एक श्लोक प्रसिद्ध है। जिसमें पतञ्जलि का स्मरण योगकर्ता, महावैयाकरण एवं वैद्य के रूप में किया गया है । प्रो.पी.सी.चक्रवर्ती तथा ब्रुनो लिबिख ने योगकर्ता पतञ्जलि एवं वैयाकरण पतञ्जलि को अभिन्न माना है; किन्तु चरक के रचयिता पतञ्जलि ईसा की दूसरी शती में उत्पन्न हुए थे और योगसूत्रकर्ता पतञ्जलि का आविर्भाव तीसरी या चौथी शताब्दी में हुआ था । प्रो.लुई रेनुने दोनों को भिन्न माना है । भारतीय शास्त्रवाङ्मय में भाष्यपद्धति-संपन्न ग्रन्थों का प्रारम्भ करने की वजह से सम्पूर्ण संस्कृत व्याकरणशास्त्र पतञ्जलि का ऋणी है। 'महाभाष्य' व्याकरण का युगप्रवर्तक ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ पाणिनिकृत 'अष्टाध्यायी' की व्याख्या है, अतः इसकी सारी योजना उसी पर आधृत है। इसमें कुल ८५ आह्निक हैं।
SR No.520787
Book TitleSambodhi 2014 Vol 37
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages230
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy