________________ 78 SAMBODHI दिलीप चारण (2) इस आदर्श से न्यायिक व्यवस्था का उपार्जन कैसे किया जाय और उससे न्यायीसमाज का निर्माण कैसे किया जाय उसका कोई नक्शा हमें दिखाई नहीं देता / . (3) उसमें चर्चा के सार्वजनिक क्षेत्र का खुलापन प्राप्त नहीं होता / न सार्वजनिक चर्चा का कोई सिद्धांत इसमें प्रस्थापित है। (4) इसका अर्थ यही है कि इन तीनों चितकों का चिंतन नोन नेगोशियेबल है / विचाराधीन नहीं है। इसमें वैचारिक पुख्तता है पर विचार की समीक्षा का अवकाश (space) नहीं है। (5) लेहनिगं के अनुसार : Religious, Philosophical or Moral Comprehensive Doctrines do not provide the content of public reason. (Lehning (2009) : 116) इन तीनों चिंतको में व्यापक सार्वजनिक राजकीय सासंकृतिकता का अभाव है। (6) उचित न्याय की राजकीय संकल्पना में न्यायिक विचरण, न्याय का समान अवसर और सामाजिक और आर्थिक असमानता इन सभी घटकों पर ये तीनों चिंतक कोई प्रकाश नहीं डालते / इसमें ज्योतिबा फुले ने सामाजिक-आर्थिक असमानता का जिक्र किया है परंतु इसके न्यायिक वितरण की कोई संकल्पना प्रस्तुत नहीं की है। (7) इन तीनों चिंतकों में सामाजिक और आर्थिक असमानता के लिए न्यायिक आदर्शो के सिद्धांतो पर सामाजिक स्वीकृति की गुंजाइश नहीं है। इसका अर्थ यह है कि उन्होंने सामाजिकआर्थिक असमानता है, और सामाजिक समानता होनी चाहिए ऐसी अपेक्षा रखी है मगर उसके लिए सामाजिक स्वीकृति का आधार किस तरह निर्मित किया जाय इस बारे में कोई जिक्र नहीं किया / उचित न्याय और स्वस्थ समाज निश्चित रूप से नैतिक शून्यावकाश में प्रस्थापित नहीं हो सकते / इसका अर्थ यह है कि न्याय के लिए और न्याय की चाहत (Love of Justice) के लिए हमें मार्था नोसबाम (Martha Nussbaum) जिसे पोलिटीकल इमोशन्स कहते हैं, उसका वरण करना होगा। मार्था नोसबाम का कहना है कि सभी समाज भावनात्मक है और वर्तमान समाज अपनी बहुलता के साथ ही अपनी उदार राजनैतिक व्यवस्था के साथ भावनात्मक नहीं है वैसा कहना अनुचित है। स्थिर लोकतंत्र में भी क्रोध, भय, अनुकंपा, घृणा, ईर्ष्या, दुःख, अपराधबोध जैसी भावनात्मकता होती है / प्रजाजीवन में उसका चयन करना और न्यायिक समाज के उछेर (Currivate) के लिए हमें राजकीय भावनाओं को समझना चाहिए क्योंकि राजकीय क्षेत्र में भावनाएँ अनिवार्य रूप में ज्ञानात्मक मूल्यांकन (cognitive appraisal) है। क्योंकि वह ऐसा प्रत्यक्ष है जिसमें मूल्य का स्वरुप निहित या प्रक्षिप्त होता है और यही रूपों से सामाजिक विषय और विषयों के प्रति विचार एवं व्यवहार का संचरण होता है। स्वस्थ समाज के लिए हमें ऐसा भावनात्मक का विकास करना होगा जो राज्य की सांस्कृतिक अभीप्सा के मूल सिद्धांत को भले ही अपूर्ण रूप से भी समर्थन करे और इससे समीक्षात्मक राजकीय