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Vol. XXXVII, 2014
भारतीय नवजागृति के तीन दार्शनिकों की समीक्षा
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संस्कृति की सुरक्षा में सहयोग हो सके। इसके लिए राजकीय संस्कृति के सिद्धांतों और उसका समर्थन करनेवाली भावनात्मकता की सतत समीक्षा होनी चाहिए। सच्चा उदारमतवाद सदैव विरोधी सुर का सम्मान करता है और उसके मूल्य और भूमिका को स्वीकारता है। इस सार्वजनिक अवकाश को सदैव बनाये रखना होगा । राष्ट्र के आदर्शवादी दंभों को त्याग करके असमान स्त्रियों और असमान पुरुषों की आवश्यकताओं को कार्यान्वित करने का साहस जुटाना होगा । (Nussbaum (2013) : 7) नागरिकों की सलामती और स्थिरता का जीतना महत्त्व है उतना ही हमें विरोधी अभिमत का अवकाश बनाए रखना होगा । उसके लिए भिन्न दृष्टि रखनेवाले सर्जनशील व्यक्तियों के लिए पूरा अवकाश राज्य को प्रस्थापित करना होगा। स्वतंत्र सुर को राजकीय दमन से बचाना होगा । अर्थात् स्वातंत्र्य और उस स्वतंत्रता का रक्षण करने की भौतिक सुविधा प्रदान करनी होगी। ऐसी व्यवस्था का सृजन करने के लिए हमें भावनात्मकता का उछेर (Cultivation) करना होगा । जो हमें प्रेरित भी करे और उसका संस्थीकरण भी करे । ऐसी भावनात्मकता का संवर्धन करना होगा अर्थात् राज्यसत्ता नागरिकों के मानसशास्त्र को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करें । संस्थाएं भी उचित ताटस्थ्य और करुणा का निर्माण करने के लिए सक्षम हो; उतना ही नहीं, उसके लिए संस्थागत विमर्श भी उतना ही मूल्यवान है जीतनी प्रेरणा मूल्यवान है । हम अन्य से संलग्न है यह भावात्मक क्षमता और अन्य से संलग्न रहने की कल्पनाशीलता की क्षमता को हमें स्वीकार करना होगा। ये दोनों क्षमताओं का पोषण ही स्वस्थ समाज के निर्माण को प्रोत्साहित कर सकता है । ऐसा प्रोत्साहन हमें विवेकानंदजी के मानवीय और अभीप्सामूलक राष्ट्रभक्ति की भावनात्मकता में मिलता है। .
__अन्य के प्रति करुणा की भावना, परार्थ और लोककल्याण के लिए प्रेरक है । लोककल्याण की संस्थाएँ असमान मानव अस्तित्व को धिक्कारने के बजाय लवचिकता और दया से कार्य करने की दृष्टि नागरिकों को देती है। नागरिको को उसकी शिक्षा भी लेनी चाहिए । हमें करुणामय नागरिकत्व के सामने भय, ईर्ष्या और शरम इन तीनों भावनाओं का परीक्षण करना चाहिए। यह स्पष्ट है कि ये भावनाएँ निषेधक भूमिका की रचना करती है । स्वस्थ समाज को इन तीनों निषेधक भावनाओं के सामने जूझना होगा। स्त्री या पुरुष जिस अवस्था में, जिस स्थिति में है, उस स्थिति का स्वीकार करके उनकी परिस्थिति की निंदा न करके मर्यादाओं को दूर करने का प्रयास करना चाहिए । अर्थात् हमें एक दूसरे का सम्मान समान नागरिक्त्व के स्वीकार से करना चाहिए। उसी से ही राजकीय सिद्धांतों और राजकीय संस्थाएँ स्थिर रह सकती हैं। उसी के कारण मार्था नोसबाम का कहना है कि न्याय के क्षेत्र में प्रेम और करुणा की भावनात्मकता स्वस्थ समाज के लिए आवश्यक एवं अनिवार्य है। आर्थिक विचार, संरक्षण का विचार, कम्प्यूटर विज्ञान और तकनीकी का अच्छा उपयोग स्वस्थ समाज के लिए अनिवार्य है उतनी ही अनिवार्यता हमारे हृदय और भावना की भी है क्योंकि केवल विशेषज्ञता से ही स्वस्थ समाज का निर्माण नहीं हो सकता। हमारे पास हसी भी है और आसुं भी है। खुशी भी है और गप भी है। अन्य के दुःखों से जो रो न सके और उसकी पीड़ा को दूर करने के लिए उद्यत न रहे वह निश्चित रूप से स्वस्थ समाज का नागरिक नहीं हो सकता।
भावात्मकता का व्याकरण अन्य के संबंध के बिना अपूर्ण है अन्यथा मानव और मानवता रुग्ण,