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Vol. XXXVII, 2014 भारतीय नवजागृति के तीन दार्शनिकों की समीक्षा में इस आदर्श की राज्य सत्ता द्वारा स्वीकृति आवश्यक है । यह स्वीकृति राजकीय उदारमतवाद से ही सम्भव बन सकती है। राजकीय उदारमताद का नैतिक विषय (Moral Subject) नागरिक (सिटीजन) है। यहाँ हमें व्यक्ति और नागरिक के बीच भिन्नता करनी पडेगी। उसके लिए हमें उदारमतवादी लोकतंत्र में नागरिकता का सिद्धांत प्रस्तुत करना होगा । ऐसे समाज में सभी नागरिक एक ही आदर्श का वरण करें, ऐसा नहीं हो सकता । समाज और लोकतंत्र के भिन्न आदर्श हो सकते हैं। इसके बावजूद अन्य के हित की रक्षा प्रमुख है क्योंकि इसी पर आधार स्वस्थ समाज की आधारशिला रखी जा सकती है । जोन राउल्स के अनुसार It is the well-ordered society of justice as fairness that is intrinsically good - न्याय का औचित्य अर्थात् उचित न्यायव्यवस्था वह उदारमतवादी सर्वाश्लेषी सिद्धांत है जो न्याय की उदारमतवादी राजकीय संकल्पना - स्वस्थ समाज के लिए उपयुक्त है । (Rawls (1971) : 65) उसमें उदारमतवादी न्याय और स्वस्थ समाज की परस्परावलंबिता की स्वीकृति है। यह परस्परावलंबिता हमें पारस्परिक सद्भाव के प्रति प्रेरित करती है। उसमें करुणा, चिंता, पारस्परिक हितचिंतन, अन्य को सुनने और समझने की अभिलाषा एक स्वस्थ समाज के लिए, सुव्यवस्थित समाज के लिए आवश्यक है। यहाँ हमें अपने जीवन के निजी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र के बीच भिन्नता करनी होगी। इस सार्वजनिक क्षेत्र को हम राजकीय क्षेत्र कह सकते हैं। जिसमें समानश्रेय की राजनीति को राजकीय अधिकारों से तबदील करना नहीं चाहिए। यह तभी सम्भव हो सकता है जब उसे सभी नागरिक पहचानें और सपोर्ट करें, तभी ही न्याय एक ताकिक सर्वग्राही सिद्धांत बन सकता है। समाज में तभी ही सामाजिक एकता और स्थिरता हम प्रस्थापित कर सकते हैं । इसके लिए व्यक्तियों में न्यायिक दृष्टि को पहचानने की क्षमता और न्याय प्राप्त करने की क्षमता होनी चाहिए जिससे हम श्रेय की संकल्पना को बौद्धिक रूप से प्रेरित कर सकें और श्रेय की संकल्पना का पुनर्मूल्यांकन कर सकें। इसलिए व्यक्तियों में बौद्धिक क्षमता होना ही पर्याप्त नहीं है परंतु बौद्धिक होना भी आवश्यक है। ऐसी क्षमतावाला व्यक्ति ही नागरिकों के बीच समानता का आधार बन सकते है। राउल्स के अनुसार न्याय की राजकीय संकल्पना को कार्यान्वित करने के लिए दो प्रकार के राजकीय मूल्यों पर ध्यान देना होगा । (Rawls (2001) : 91)
१. उचित न्याय का मूल्य (Value of Fair Justice) २. सार्वजनिक तर्क का मूल्य (Value of Public Reason)
सार्वजनिक तर्क का मूल्य जिसमें नागरिकों के बीच मुक्त - बौद्धिक चर्चा का मार्गदर्शन हो । सार्वजनिक तर्क सार्वजनिक राजकीय चर्चा की मर्यादा अंकित करता है और वह लोकतांत्रिक नागरिकत्व का आदर्श है । सार्वजनिक राजकीय चर्चा की मर्यादाएं नागरिकों में अंतनिहित होनी चाहिए । न्याय की राजकीय संकल्पना जो सभी नागरिक स्वीकार कर सकते है, वह सार्वजनिक तर्क और उसके औचित्य, का आधार है। इसी के आधार पर पारस्परिकता की कसौटी का निर्माण होता है। वह सिविक फ्रेन्डशिप 'नागरिक मित्रता' का आधार है। इससे हम अबौद्धिक सर्वाश्लेषी सिद्धांतो का अस्वीकार कर सकते हैं। इस संदर्भ में यदि हम इन तीनों चिंतकों के ऊपर विचार करें तो यह स्पष्ट होता है कि :
(१) ये तीन सिद्धांत मानव के आदर्श हैं, न कि नागरिकत्व के।