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________________ 294 ग्रंथ समीक्षा SAMBODHI विशुद्धि का प्रयत्न है, वह मनुष्य को पाशविक वासनाओं, तृष्णा तथा आकांक्षाओं और अपेक्षाओं से उपर उठाता है। जबकि बौद्धिक नैतिकता सामाजिक व्यवसाय है, उसमें लेना और देना है, उसमें कुछ आकांक्षाएँ और अपेक्षाएँ हैं, जबकि धर्म(धम्म) में तो खोना ही खोना है, वहाँ पाने की अपेक्षा नहीं है, मिट जाने (निर्वाण) की सार्थकता है। स्वयं प्रो. बन्दिस्ते लिखते हैं - But again wisdom is not enough...... Now it is only when compassion is added to wisdom and morality..... The Buddha wanted people to be not merely academician but also wise and sensible (page 143: 144) धर्म एकांगी विकास नहीं, एक सर्वांगीय या समग्र विकास है । वह आत्मा का परमात्मा की दिशा में मनुष्य का एक श्रेष्ठतम मानव के रूप में (Super Human) या अर्हत्त्व या बुद्धत्व की प्राप्ति के रूप में सर्वांगीण विकास है। धर्म (Religion) का मुख्य उदेश्य मानवीय कमजोरियों और मानसिक विद्रूपताओं (Mantal-pollutions) से उपर उठना है । वह Human being को Super Human being बनाता है, वह मनुष्य को Rational animal से उपर उठाता है । स्वयं प्रो. बन्दिस्ते (Page 138-139) भी इसे स्वीकार करते हुए लिखते हैं - (1) Purity in life is Dhamma (2) To discard trishna is Dhamma (3) To realize temporariness of all is Dhamma (4) To accept the law of cause and effect is Dhamma अतः धम्म और धर्म में कोई अन्तर नहीं है, उनके द्वारा उनमें विभाजक रेखा खींचना समीचीन नहीं है। साथ ही धर्म का ईश्वर को सृष्टा मानने से भी कोई सम्बन्ध नहीं है। इससे भी आगे बढ़कर धर्म अन्य कुछ नहीं कुदरत का नियम है, यदि प्रो. बन्दिस्ते धर्म की इन स्थापनाओं को स्वीकार करते हैं तो उनके प्रतिपादन में जो विरोधाभास प्रतीत होते हैं उनका सम्यक् रूपेण समाधान हो जाता है। वस्तुतः धर्म मानव मन की हृदय से उठी एक ऐसी मांग है जो वासनात्मक बुद्धि से परे है और यही जहाँ एक ओर धर्म को सद्धर्म बना देती है, वहीं दूसरी ओर Human being (Rational animal) को Super Human being बना देती है। धर्म तो मनुष्य में बैठे पशु का निर्मूलीकरण या निर्मलीकरण है, ऐसा धर्म ही मानव की मानवता का रक्षक है, केवल भौतिकवादी बुद्धिवाद नहीं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520786
Book TitleSambodhi 2013 Vol 36
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages328
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size7 MB
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