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________________ 202 विजयशंकर शुक्ल SAMBODHI ६३० पाण्डुलिपियों की सूची का सम्पादन डॉ. एम. एस. मेनन एवं डॉ. एन्. वी. पी. उनिथिरी ने किया । इस सूची का प्रकाशन भी वहीं से हुआ है। १९८५ में ही बर्दमान विश्वविद्यालय की ६०७ पाण्डुलिपियो की सूची का प्रकाशन Descriptive Catalogue of Sanskrit Manuscripts, Volume-1 का प्रकाशन हुआ जिसका संकलन श्रीमती जयश्री मुखर्जी ने किया तथा सम्पादन डो. सिद्धेश्वर चटोपाध्याय के द्वारा किया गया । इसका द्वितीय एवं ततीय भाग क्रमश: १९८९ एवं १९९६ में ६५४ एवं १८० पाण्डुलिपियों के विवरम के साथ प्रकाशित हुये । तृतीय भाग के सम्पादक डॉ. अमरनाथ भट्टाचार्य थे । इस भाग में नव्यन्याय की पाण्डुलिपियों का विवरण है। Welcome Institute for the History of Medecine, London के पुस्तकालय में उपलब्ध संस्कृत एवं प्राकृत भाषा की ७१२८ पाण्डुलिपियों की सूची प्रकाशन के लिये तैयार की गई । इनका प्रकाशन प्रस्तावित है। . १९८५ में ही भारतीय विद्या भवन, मुम्बई के पुस्तकालय में उपलब्ध १३७७ पाण्डुलिपियों की सूची का संकलन श्री एम. बी. वर्णेकर ने तालिका क्रम में तैयार किया। १९८६-२००२ : Catalogue Descriptf des Manuscripts (Descriptive Catalogue of Manuscripts) के भाग-१ एवं २ को डॉ. वी. वरदाचारी ने तैयार किया एवं प्रो. एन्. आर. भट्ट ने प्राक्कथन जोड़ा। दोनों भागों का प्रकाशन क्रमशः १९८६ एवं १९८७ Institute Francais D Indologie. Pondichery में से किया गया । प्रथम भाग के अन्तर्गत शैवागम से सम्बन्धित सात सौ पाण्डुलिपियों का विवरण है एवं द्वितीय भाग लगभग एक हजार पाण्डुलिपियों का विवरण प्रस्तुत करता है। प्रो. वी. वरदचारी आगमों के सैद्धान्तिक पक्ष को समझने वाले विद्वानों में अग्रणी थे। द्वितीय भाग में अपनी विस्तृत भूमिका में एक ओर जहा डॉ. वरदाचारी ने सभी मूलागम, उपागम एवं विविध विधियों से सम्बन्धित बृहद् सूची दी हैं वहीं आगम शास्त्र की परम्परा का भी वर्णन किया है। इसी क्रम में वरदाचारी जी ने १९९० में भाग-३ का सम्पादन किया जिसमें तमिल, तेलगु एवं मणिप्रवाल भाषा की पाण्डुलिपियाँ हैं । यह सभी मूल एवं उपागम से सम्बन्धित हैं । इस कार्य में एस्. दीक्षितार्, टी. गनेशन् एवं एफ् ग्रिमल ने उनकी सहायता की थी । इन्दिरा गान्धी राष्ट्रीय कला केन्द्र ने कलामूलशास्त्र ग्रन्थमाला के अन्तर्गत ईश्वरसंहिता का प्रकाशन पाँच भागों में किया है। इसके प्रथम भाग में आगम शास्त्र विशेष रूप से पाञ्चरात्र आगम पर डॉ. वी. वरदाचारी की भूमिका पठनीय है । फ्रेंच Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520786
Book TitleSambodhi 2013 Vol 36
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages328
LanguageEnglish, Sanskrit, Prakrit, Gujarati
ClassificationMagazine, India_Sambodhi, & India
File Size7 MB
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