________________
Vol. XXXVI, 2013 स्वातन्त्र्योत्तर भारत में पाण्डुलिपियों का संग्रह एवं सूचीकरण 195
सूचियों का सम्पादन पूज्य मुनि पुण्यविजय जी महाराज ने किया । इस ग्रन्थमाला का ६वा एवं ७वा भाग २००३ में हस्तप्रतसूचिपत्र, लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर-संग्रह से ५०६७ पाण्डुलिपियों के विवरण के साथ प्रकाशित हुआ । इसके प्रधान सम्पादक डॉ. जितेन्द्रभाई शाह हैं । इन सूचियों के प्रकाशन में डॉ. श्रीमती प्रीति नयन पंचोली का योगदान प्रशंसनीय है । जैन परम्परा में कहा गया है कि मानव जीवन को इस असार संसाररूपी समुद्र को पार करने के लिए दो ही महत्त्वपूर्ण साधन हैं - एक जिन प्रतिमा और दूसरा जिन आगम अर्थात् भक्ति एवं ज्ञान ही संसार समुद्र से पार करने का उपाय है। जैन परम्परा में ज्ञान पञ्चमी एवं श्रुतपञ्चमी जैसे अनुष्ठान भी मनाये जाते हैं । मुनि श्री पुण्यविजय जी ने ज्ञान भण्डारों के संरक्षण एवं सम्मान का राष्ट्रव्यापी कार्य प्रारम्भ किया था। उन्होंने पाटण, खम्भात, जैसेलमेर और अहमदाबाद के अनेक 'ग्रन्थभण्डारों जिनकी स्थिति अत्यन्त दयनीय थी, को सुव्यवस्थित करवाया। उन्हीं की प्रेरणा से श्रेष्ठीवर्य श्री कस्तूरभाई को एक शोध संस्थान स्थापित करने की प्रेरणा मिली जिससे उन्होंने अपने पूज्य पिताजी की स्मृति में लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर की स्थापना का निश्चय किया । यहाँ की सूची का वैशिष्ट्य यह है कि ग्रन्थ
का ग्रन्थप्रमाण भी सूची के कोष्ठक ८ के अन्तर्गत दिया गया है। १९६४ : वैसे तो प्रत्येक पाण्डुलिपि का एक-एक पृष्ठ रत्न की तरह है लेकिन रत्नों का एक नायाब
खजाना है भारत अस्मिता एवं संस्कृति की पहचान को द्योतित करनेवाला राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली । यहाँ के संग्रह में कई तरह की एवं विभिन्न लिपियों में पाण्डुलिपियाँ संगृहीत की गई हैं । यहाँ दो तरह के संग्रह हैं, एक है अरबी एवं फारसी भाषा की पाण्डलिपियों का तथा दसरा संस्कत एवं अन्य भाषाओं की पाण्डलिपियों का एवं दोनों संग्रह एक दूसरे के पूरक हैं । हमें यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि यहाँ के संग्रहपाल डॉ. सत्यव्रत त्रिपाठी भारत में पाण्डुलिपि-शास्त्र के विशेषज्ञों में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं । हर पाण्डुलिपि का पृष्ठ इनके सामने उपस्थित रहता है । इस अनूठे संग्रह की जितनी प्रशंसा की जाए कम है । लेकिन दुर्भाग्य एवं शासकीय समस्याओं के कारण यहाँ की पाण्डुलिपियों की कोई विवरणात्मक सूची नहीं है जबकि यहाँ के संग्रहालय इस कार्य के हेतु बन सकते हैं । इसकी एक शरुआत १९६४ में हुई थी जब लगभग १०० पाण्डुलिपियों की एक विवरणात्मक सूची का प्रकाशन किया गया। इस सूची में संस्कृत, पालि, प्राकृत, तिब्बती, अरबी एवं फारसी भाषा की पाण्डुलिपियों का विवरण प्रस्तुत किया गया है । प्रसंग यह था कि – ४-११, जनवरी, १९६४ में International Congress of Orientalist के आयोजन के अवसर पर राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली ने Manuscript from Collection शीर्षक से Descriptive Catalogue of Manuscripts का प्रकाशन किया । सूची में उल्लिखित सभी पाण्डुलिपियों का प्रदर्शन किया गया। जिसमें तीसरी शताब्दी की भूजपत्र की पाण्डुलिपि
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org